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वापिस लौटकर काम चक्र पर आती है, जिससे यौन एवम् मूत्र सम्बन्धी समस्यायें पैदा हो जाती हैं।
इस चक्र का कण्ठ चक्र से उच्च सम्बन्ध है। इस चक्र की यौन ऊर्जा का एक अंश प्राण-शक्ति की एक उच्च कोटि की ऊर्जा में परावर्तित होता है, जिसका कण्ठ चक्र और ब्रह्म चक्र के सुचारू रूप से परिचालन में प्रयोग होता है। यह उच्च कोटि की ऊर्जा आत्मिक उत्थान के लिए एक प्रकार से पेट्रोल का कार्य करती है तथा इस प्रकार के परिवर्तन करने की कला 'अर्हत योग (Arhatic Yoga) के जानकार जानते हैं। इस प्रकार एक प्रकार से ब्रह्मचर्य की शक्ति को आत्मा के उत्थान हेतु प्रयोग करना कह सकते हैं, जिसका सम्भवतः साधु जन अभ्यास करते हैं।
चूंकि काम चक्र से ऊर्जा मस्तिष्क के क्षेत्र में जाती है, अतएव मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति का काम चक्र काफी कमजोर होता है। शक्तिशाली काम
चक्र जीवन में व्यक्ति की उन्नति में काफी सहायक होता है। (ग) चक्र के गलत ढंग से कार्य करने के कारण रोग
शारीरिक-यौन सम्बन्धी रोग, नपुंसकता, प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ जाना, मूत्र व मूत्राशय सम्बन्धी रोग।
मनो- मस्तिष्क का कमजोर होना। (घ) विविध- इस चक्र में ६ पटल होते हैं और लाल व नारंगी प्राणिक ऊर्जा होती
है। यह लाल रंग का प्राण दो प्रकार के शेड (shade) में होता है। जब कोई व्यक्ति मूत्र त्याग रहा होता है, तो यह चक्र व कटिचक्र अधिक नारंगी रंग की ऊर्जा पैदा करते हैं जो इस शरीर से व्यर्थ पदार्थ को बाहर फेंकने में प्रयोग होती है।
यह चक्र निम्न भौतिक सृजनात्मक क्रिया का केन्द्र (centre of lower physical creativity) है। इसलिये शक्तिशाली चक्र वाले व्यक्ति सफल कारीगरजैसे माली, बढ़ई. लुहार, रसोइया आदि होते हैं।
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