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________________ मनो- उदासी, मायूसी (depression), आलसीपन, अव्यवहारिक होना, आत्महत्या करने की प्रवृत्ति (पराकाष्ठा की दशा में)। जो व्यक्ति पैरेनौइड (paranoid) हैं अथवा नशीली चीजों के आदी होते हैं, उनका मूलाधार चक्र सही ढंग से कार्य नहीं करता है (नोट-. पैरेनौइड उसको कहते हैं जिसका मस्तिष्क विकृत होकर अवर्तमान दृश्यों को देखता है, दूसरों को कष्ट देता है, दूसरों को अति शंका व अति अविश्वास से देखता है)। (घ) विविध– यह भू-ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है, जो तलवे के चक्रों द्वारा ऊर्जा ग्रहण करता है। इस चक्र के ४ पटल होते हैं। इस चक्र में मुख्यतः लाल और नारंगी रंग की ऊर्जा होती हैं व कम अंशों में पीले रंग की भी ऊर्जा होती है। अतएव प्राणशक्ति उपचार में लाल, नारंगी, पीला, नारंगी--पीला, नारंगी लाल रंग की ऊर्जा प्राणशक्ति उपचारक द्वारा इस चक्र से ली जाती है। इस चक्र के आधीन कार्यरत लघु चक्र (minor chakras) होते हैं। ये चक्र हाथ की हथेली {hand), कोहनी (elbow), कांख (armpit}, पैर के तलवे, घुटने, कूल्हे (hip) और मस्तिष्क के पिछले भाग में अवस्थित हैं। ___चूंकि इस चक्र की ऊर्जा का एक अंश मस्तिष्क को भी जाता है, इसलिये मस्तिष्क के सुचारुपूर्वक कार्य करने हेतु मूलाधार का सुचारुपूर्वक कार्य करना आवश्यक है। (2) काम चक्र— SEX CHAKRA (क) स्थिति- यह चक्र पेडू- जननांग क्षेत्र (pubic area) में होता है। (ख) कार्य- यह चक्र जननांगों (Sexual organs), मूत्राशय (bladder) और पैरों को नियंत्रित करता है और ऊर्जित करता है। इस चक्र पर भूलाधार चक्र, कण्ठ चक्र व आज्ञा चक्र तीव्र प्रभाव डालते हैं। इसलिये यदि तीन चक्रों में कोई चक्र ठीक प्रकार कार्य नहीं करता, तो काम चक्र भी ठीक प्रकार कार्य नहीं करता। यह चक्र यौन प्रवृत्ति (sexual instinct) का केन्द्र है। इस चक्र से ऊर्जा का प्रवाह नाभिचक्र में होते हुए ऊपर की ओर होता है। अतएव यदि नाभि चक्र में अधिक जमाव (congestion) हो जाता है, तो यह ऊर्जा नाभिचक्र से टकराकर ४.२५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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