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(ख) कार्य - यह चक्र पेड़ की जड़ के समान होता है। इस चक्र का दूसरा नाम "जड़
या मूल चक्र है" । यह भौतिक शरीर को नियंत्रित करता है, ऊर्जा देता है और शक्तिशाली बनाता है। यह मांसपेशियों और अस्थि तंत्र रीढ़ की हड्डी, पीठ, शुद्ध रक्त के निर्माण, अधिवृक्क ग्रंथियों (Adrenal glands), शरीर के ऊतक (Tissues) और आंतरिक अंगों को नियंत्रित करता है और ऊर्जा देता है। यह चक्र जननांगों को तथा काम चक्र को काफी प्रभावित करता है और जननांगों को ऊर्जा प्रदान करता है। यह शरीर को स्फूर्ति प्रदान करता है, शरीर को गर्मी देता है और शिशु व बच्चों के विकास को भी प्रभावित करता है। यह हड्डी के अन्दर खाली जगह में अवस्थित नरम व वसायुक्त पदार्थ जिसको अस्थि - मज्जा ( बोन-मैरा) (Bone marrow) कहते हैं और जहाँ लाल व श्वेत रक्त के कण बनते हैं, उसको भी प्रभावित करता है जिससे रक्त का उत्पादन और गुणवत्ता नियंत्रित होते हैं। यह हृदय को भी प्रभावित करता है।
मूलाधार चक्र की ऊर्जा का एक अंश मस्तिष्क को भी पहुंचता है, इसलिये इसके ठीक प्रकार से काम न करने से मस्तिष्क बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। यह चक्र स्व- जीवित रहने (self-survival) और स्व-संरक्षण (selfpreservation) का केन्द्र है।
वृद्ध व्यक्तियों का मूलाधार चक्र कमजोर हो जाता है, इसलिये उनकी कमर झुक सकती है। घाव व टूटी हड्डी देर में जुड़ती है व जोड़ों का दर्द अथवा संधिवात (arthiritis) होने की संभावना रहती है। यह चक्र स्वस्थ व जवान रहने के लिए अति महत्वपूर्ण है। जिनका चक्र अधिक शक्तिशाली व क्रियाशील होता है, वे अधिक स्वस्थ, शक्तिशाली व स्फूर्तिवान होते हैं, किन्तु बहुत अधिक सक्रियता बेचैनी व अनिद्रा पैदा कर सकती है।
(ग) चक्र के गलत ढंग से कार्य करने के कारण रोग
शारीरिक- संधिवात, रीढ़ की हड्डी की समस्यायें, रक्त के रोग तथा एलर्जी, घाव व टूटी हड्डियों का देर से ठीक होना, स्फूर्ति की कमी, हृदय रोग, मस्तिष्क के रोग, यौन रोग, जीवन शक्ति की कमी, अधिश्वेतरक्तता (leukemia), विकास समस्यायें, कैन्सर, अस्थमा, पीठ की समस्यायें ।
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