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कम जरूरत वाले अंगों को ऊर्जा देते हैं और नियंत्रित करते हैं। ये चक्र दिखाई देने वाले भौतिक शरीर को भेद कर उससे आगे की ओर निकल आते हैं। इनके निम्नलिखित आवश्यक कार्य होते हैं : (क) ये प्राणशक्ति को सोखकर, पचाकर उसे शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाते
(ख) चक्र सम्पूर्ण भौतिक शरीर तथा उसके विभिन्न अंगों को नियोजित करते हैं,
ऊर्जा देते हैं और उनके दीक प्रकारको कार्य करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। अंतःस्रावी (endocrine) ग्रंथियों का नियंत्रण और उनको ऊर्जा प्रदान करने का कार्य कुछ बड़े चक्र करते हैं। अंतःस्त्रावी ग्रंथियों को उत्तेजित करने या निरोधी करने अथवा उनका कार्य कम या अधिक करने के लिए बड़े चक्रों की शक्ति को नियंत्रित या विस्थापित किया जा सकता है। चक्रों के छीक प्रकार से कार्य
न करने के कारण आंशिक रूप से कई प्रकार की बीमारियां होती हैं। (ग) कुछ चक्र मानसिक क्षमता के केंद्र होते हैं। कुछ विशेष चक्रों ( ऊर्जा केंद्रों)
को उत्तेजित करने से कुछ मानसिक क्षमताओं का विकास होता है। उदाहरण के लिए हाथ के चक्रों को आसानी से और सुरक्षित रूप से उत्तेजित किया जा सकता है। ये चक्र हथेली के मध्य में स्थित होते हैं। हाथ के चक्रों को उत्तेजित करके व्यक्ति में सूक्ष्म ऊर्जा को महसूस करने की योग्यता आ जाती है और बाहरी, स्वास्थ्य एवं आंतरिक आभा को भी महसूस करने की क्षमता आ जाती है। नियमित रूप से इन पर ध्यान केंद्रित करके आसानी से इसे पूरा किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को “हाथों को संवेदनशील बनाना” कहा गया है।
जीव द्रव्य में स्थित ११ मुख्य ऊर्जा चक्रों का वर्णन निम्नलिखित है। इस पुस्तक में संक्षिप्तीकरण के उद्देश्य से इन चक्रों को क्रमशः उसी संख्या से दर्शाया गया है, जो नीचे दिये गये हैं; जैसे मूलाधार चक्र को संख्या 1 से। (1) भूलाधार चक्र BASIC CHAKRA (क) स्थिति- यह चक्र रीढ़ की हड्डी के अन्तिम मनका (coccyx) के अन्तिम छोर में
होता है।
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