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चक्रों द्वारा ग्रहण की जाती है। विशेष प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति अपनी त्वचा के सूक्ष्म छिद्रों द्वारा भी इसे प्राप्त कर सकता है। (ग) भू-प्राणशक्ति- भूमि में पायी जाने वाली भू-प्राणशक्ति कहलाती है। यह साधारणतः भूमि स्तर से लगभग एक फुट छह इंच ऊपर तक विद्यमान रहती है। इसे पैर के तलुओं से प्राप्त किया जाता है। यह प्रक्रिया बिना ध्यान दिये अपने आप ही होती रहती है। नंगे पैर चलने से शरीर द्वारा ग्रहण किये गये भू-प्राण की मात्रा में वृद्धि होती है। इसकी गुणवत्ता वायु प्राण से अधिक होती है। शायद तपशक्ति के अतिरिक्त, इस कारण हमारे त्यागीगण नंगे पैर भूमि पर काफी दूर तक बगैर थके चले जाते हैं।
सूर्य के प्रकाश, वायु और भूमि के संपर्क में आने वाला पानी इन तीनों से प्राणशक्ति प्राप्त करता है। पेड़-पौधे धूप, वायु, भूमि और पानी से प्राण शक्ति सोखते हैं।
कुछ पेड़ (जैसे चीड़ के वृक्ष या पुराने, बड़े, स्वस्थ पेड़) अधिक मात्रा में प्राणशक्ति का रिसाव करते हैं या छोड़ते हैं। इन पेड़ों के नीचे थके या बीमार व्यक्ति को आराम करने से बहुत अधिक फायदा होता है। यदि पेड़ से शब्दों में बीमार व्यक्ति के स्वास्थ्य लाभ की कामना की जाए तो और अधिक अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। कोई भी व्यक्ति जाग्रत अवस्था में इन पेड़ों से अपने हथेलियों को संवेदनशील करके, पेड़ों से कामना करने से प्राणशक्ति प्राप्त कर सकता है। संवेदनशील करने की विधि भाग ५, अध्याय ४, क्रम ५ (घ) में दी गयी है। अधिक मात्रा में प्राणशक्ति प्राप्त करने से वह अपने शरीर में सिहरन या झुरझुरी और सम्मोहन महसूस करेगा! इस प्रक्रिया को कुछ बार अभ्यास करके सीखा जा सकता है।
कुछ क्षेत्रों में अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक प्राणशक्ति होती है। इनमें से कुछ अत्यधिक ऊर्जा क्षेत्रों में उपचार- केन्द्र खोले जा सकते हैं। कुछ भूमि में नकारात्मक ऊर्जा होती है जहां अधिक रहने से व्यक्ति बीमार हो सकता है, जैसे श्मसान भूमि अथवा किसी कमरे में संक्रामक रोगी की उपस्थिति द्वारा अथवा हस्पतालों, पागलखाना आदि स्थानों पर।
खराब मौसम के कारण कुछ व्यक्ति न केवल बदलते तापमान से बीमार पड़ते हैं, बल्कि सौर और वायु प्राण शक्ति में कमी के कारण भी बीमार पड़ते हैं। दिव्य
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