________________
५. रोगी व्यक्ति को जाने आने पाली समय में नकारात्मक ऊर्जा व रोगों से
बचाने के लिए ऊर्जा का ढाल बनाना (भाग ५, अध्याय २३)। दवा की शक्ति/ क्षमता बढ़ाना तथा वस्तुओं को ऊर्जित करना (भाग ५, अध्याय ३६)।
वायवी तौर पर कमरे की सफाई (भाग ५ अध्याय ३६)। .... पौधों को शीघ्र विकसित करना (भाग ५ अध्याय ३६)।
ऊर्जा की ढाल द्वारा किसी की यात्रा को सुरक्षित करना (भाग ५ अध्याय
३६)। १०. खिलाड़ी की बगैर दवा के अस्थायी तौर पर खेलने की क्षमता बढ़ाना (भाग
५ अध्याय ३६)। ११. आक्रमक पशु के आक्रमण को तुरन्त समाप्त करना (भाग ५ अध्याय ३६)। १२. नगादि की वायवी सफाई (भाग ५ अध्याय २६) ।
अध्याय ८
प्राण ऊर्जा का स्रोत प्राण शक्ति या आभा या ‘की (Ki) वह ओजस्वी ऊर्जा या जीवन शक्ति है जो शरीर को जीवित व स्वस्थ रखती है। इसके मुख्यतः तीन स्रोत हैं: (क) सौर प्राणशक्ति- यह सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होती है। धूप स्नान द्वारा अथवा धूप में रखा हुआ पानी पीकर यह ऊर्जा प्राप्त होती है। अधिक सौर ऊर्जा शरीर को हानि पहुंचा सकती है क्योंकि यह बहुत अधिक शक्तिशाली होती है। (ख) वायु प्राणशक्ति-- यह वायु मण्डल में पायी जाती है। श्वसन क्रिया के माध्यम से फेंफड़ों द्वारा एवम् जीव द्रव्य शरीर के ऊर्जा केन्द्रों के माध्यम से वायु प्राणशक्ति ग्रहण की जाती है। विशेषकर यह प्राण-शक्ति प्लीहा ऊर्जा चक्र एवम् हाथ के ऊर्जा
४.१७