________________
प्राणशक्ति की कमी या घनी होने के कारण चारों ओर फैले जीव द्रव्य शरीर की नाड़ियां या नलिकाएं आंशिक रूप से या अधिक रूप से अवरुद्ध हो जाती हैं, जिसके कारण प्रभावित अंग के चारों ओर अंदर ५। ५.की और प्राणशक्ति आराम से आ जा नहीं सकती। दिव्यदर्शियों के अनुसार यह प्रभावित क्षेत्र हल्के भूरे से गहरे भूरे रंग तक के दिखाई देते हैं। यदि प्रभावित अंग में जलन हो तो इसका रंग मटमैला लाल होता है, कैंसर रोग में मटमैला पीला, कान की कुछ बीमारियों में इसका रंग मटमैला संतरे का सा और आंत्रपुच्छ के रोग (appendicitis) में मटमैला हरा होता है।'
दिखाई देने वाले भौतिक शरीर की सतह से जीव द्रव्य किरणें सीधी खड़े रूप में निकलती हैं, ये किरणें स्वास्थ्य किरणें कहलाती हैं जो आंतरिक आमा (Inner Aura) को भेदकर (पार कर) बाहर आती हैं। इन स्वास्थ्य किरणों का पुंज स्वास्थ्य आभा मंडल (Health Aura) कहलाता है। ये स्वारथ्य मंडल भौतिक शरीर से लगभग १, इंच तक होता है और उसी के आकार के प्रकार में होता है और आसपास फैले कीटाणुओं और रोगग्रस्त जीव द्रव्य पदार्थों को रोकने के लिए एक सुरक्षित आवरण के रूप में कार्य करता है। जैविक विष (जहरीली वस्तुएं), व्यर्थ पदार्थ, कीटाणु और रोग ग्रस्त जीव द्रव्य पदार्थों को स्वास्थ्य किरणें छोटे-छोटे छेदों द्वारा लगातार बाहर फेंकती रहती है। यदि व्यक्ति बीमार हो तो स्वास्थ्य किरणें भी कमजोरी से थोड़ी-सी नीचे बाहर लटक जाती हैं और पूरा शरीर रोगों से संक्रमित होने योग्य हो जाता है। उपरोक्त दूषित पदार्थों को शरीर से दूर रखने की स्वास्थ्य किरणों की क्षमता में कमी आ जाती है। स्वास्थ्य किरणों को फिर से ताकतवर और कठोर बनाकर उपचार की शक्ति को प्राप्त किया जा सकता है।
स्वास्थ्य आभा मण्डल के चारों ओर एक चमकदार ऊर्जा क्षेत्र होता है जिसे बाहरी आभा (Outer Aura) कहते हैं। यह आंतरिक और स्वास्थ्य दोनों आभाओं को भेदकर बाहर निकला होता है और भौतिक शरीर से लगभग १ मीटर दूर तक फैला होता है। सामान्यतः यह रंगीन और उल्टे अंडे के आकार का होता है। इसका रंग व्यक्ति की भौतिक, भावनात्मक और मानसिक दशा से प्रभावित होता है। बीमारी की दशा में इस बाहरी आभामण्डल में कुछ छेद हो जाते हैं जिनसे प्राणशक्ति रिसती रहती है। इसलिए बाहरी आभा को एक ऐसा शक्ति क्षेत्र माना जा सकता है जो
४.११