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प्राणशक्ति के रिसाव को रोकने या इसे जमा रखने का कार्य करता है। यानी यह आवश्यक सूक्ष्म ऊर्जा के लिए एक डिब्बे या कवच का कार्य करता है।
उपरोक्त वर्णित आभा मंडलों को भली प्रकार समझने के लिए कृपया चित्र ४.०२ से ४.०७ तक का अवलोकन करें।
आभा मण्डलों का उपरोक्त कथन एक सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा से है। अधिक बलिष्ठ व्यक्तियों, कुशल प्राणशक्ति उपचारकों, दिव्यदर्शियों, तपस्वी साधुओं एवम् आध्यात्मिक सन्तों का आभा मण्डल काफी अधिक बड़ा होता है एवम् अधिक गुणवत्तावाला होता है। अधिक बलिष्ट व्यक्ति का आंतरिक आभा मण्डल ८-१० इंच तक, कुशल प्राण शक्ति उपचारक का १ से २४ इंच तक हो सकता है। साधुओं एवम् दिव्य पुरुषों का आभा मण्डल बहुत ही अधिक हो सकता है यानी कई किलोमीटर भी हो सकता है। लेखक को एक बार परम पूज्य आचार्य श्री १०८ दया सागर जी का आंतरिक आभा मण्डल जांच करने की आवश्यकता पड़ी, किन्तु वह इसमें असमर्थ रहा क्योंकि पूज्य श्री का आभा मण्डल उस कमरे में नहीं था जहाँ वे विराजमान थे ओर उस कमरे से काफी बाहर था और पता नहीं कितने दूर तक रहा होगा। इन दिव्यात्माओं की आभा घनी, सुदृढ़ एवम् बहुत अधिक गुणवत्ता वाली होती है और उस आभा मण्डल में आने वाले जीवों पर उनके व्यक्तित्व का गहन प्रभाव पड़ता है। शास्त्रों में वर्णन आता है कि तीर्थकर भगवान जहाँ विराजमान होते हैं, वहाँ से १०० योजन दूर-दूर तक सुभिक्ष रहता है और शेर-बकरी एक घाट पानी पीते हैं। सम्भवतः यह प्रभाव उनके आन्तरिक आभामण्डल के प्रभाव से अहिंसामयी वातावरण एवं सुभिक्षता का हो जाने के फलस्वरूप होता है, ऐसा वैज्ञानिक स्पष्टीकरण हो सकता है।
अध्याय ५ जीवद्रव्य शरीर और भौतिक शरीर तथा मन
का आन्तरिक सम्बन्ध (१) जीव द्रव्य शरीर और भौतिक शरीर
जीव द्रव्य शरीर और दिखाई देने वाले भौतिक शरीर दोनों का आपसी सम्बन्ध इतना अधिक होता है कि यदि एक को कुछ हो जाए, तो दूसरा भी उससे प्रभावित