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उक्त उदाहरण हमें बताते हैं कि जीवन में ऊर्जा का एक विशेष महत्व है। इसका भौतिक शरीर से पृथक अस्तित्व होते हुए भी यह शरीर को तो निरन्तर प्रभावित करती ही है किन्तु आत्मा को भी प्रभावित करती है। जिस प्रकार शरीर से शरीर विज्ञान सृजन हुआ और शरीर को सुचारुपूर्वक सम्हालने के लिए विभिन्न उपाय संसार के सम्मुख प्रस्तुत हैं, उसी प्रकार ऊर्जा से ऊर्जा विज्ञान का सृजन हुआ। इस पुस्तक का सम्बन्ध ऊर्जा के अन्तर्गत "प्राणिक ऊर्जा" से है, इसलिए इस भाग में प्राणिक ऊर्जा (अथवा प्राणशक्ति) विज्ञान का विवरण प्रस्तुत है। इस प्राण ऊर्जा (जिसका शरीर से अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है) की विषमताओं (जिसके फलस्वरूप शरीर में रोग पैदा हो जाते हैं) को दूर करने के उपाय एवम् उसके अन्य उपयोग भाग ५ में दिए गए हैं।
अध्याय-२
प्राणशक्ति उपचार का इतिहास वर्तमान युग में प्राणशक्ति उपचार की पद्धति संसार के सामने फिलिप्पीन्स देश के एक नागरिक श्री चोआ कोक सुई (जो चीनी मूल के हैं) तथा कैमिकल इंजीनियर हैं, ने अपने गुरु (श्री मी लिंग) के मार्गदर्शन एवम् लगभग बीस वर्ष के अथक खोज एवम् प्रयोग करने के पश्चात पुनर्जागरित कर पीड़ित मानवता के समक्ष वैज्ञानिक रूप में रखा है। इस विद्या का मूलत: स्रोत भारत ही प्रतीत होता है जहाँ यह सम्भवतः विद्या लुप्तप्रायः हो गई थी। इसके जो सिद्धान्त हैं. उनसे यह प्रतीत होता है कि यह "परासामान्य उपचार' के अन्तर्गत जैन विद्या रही होगी तथा यह बौद्धों के हाथ लग गयी होगी। श्री अकलङ्काचार्य से शास्त्रार्थों में परास्त होकर जब बौद्ध अनुयायी तिब्बत आदि देशों में पलायन कर गये तो इस विद्या से सम्बन्धित पुस्तकें भी अपने साथ ले गये होंगे। श्री चोआ कोक सुई ने अनेक वर्ष रहस्यात्मक या गूढ़ विज्ञान पर पुस्तकों के अध्ययन करने और शोध करने में बिताया और सम्भवतः इन पुस्तकों को पढ़ा होगा। इसके अलावा इनके योगियों, उपचारकों, चीनी 'की कुंग' (आंतरिक शक्ति को बढ़ाने की कला) की विद्या को जानने वालों और कुछ ऐसे विलक्षण व्यक्तियों, जो अपने आध्यात्मिक गुरुओं के साथ दूरदृष्टि या पारेंद्रिय ज्ञान से संबंध रखते थे, के