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________________ आत्मकथांश में कैंसर की मारक दाहक व्यथा का मर्मभेदी ब्यौरा देकर बताते हैं कि वे विशेषज्ञों के उपचार से निराश हो गये, तब णमोकार महामंत्र के जाप से उन्हें शरण समाधान शान्ति प्राप्त हुई । *** उक्त उद्धरण इस आशय से दिये गये हैं कि उच्चारण, मनन, चिन्तन जो आत्मा के निमित्त द्वारा पुद्गल की क्रियायें हैं, इनमें एक प्रकार से विद्युत शक्ति होती है, जिनसे विभिन्न प्रकार के फल हो सकते हैं। प्राण ऊर्जा भी कुछ इसी प्रकार की विद्युत है, जिसके चित्र किर्लियन फोटोग्राफी द्वारा विशिष्ट पद्धति से लिये जा चुके हैं, जिसका वर्णन अध्याय ३ में दिया है । (ग) “जैन मुनि ने चरण स्पर्श करने का वैज्ञानिक पक्ष विश्लेषित करते हुए कहा कि संतों का शरीर ऊर्जा का भंडार है। शरीर के कुछ हिस्से से ऊर्जा का सदा निष्कासन होता रहता है, वे हिस्से हैं पांव व हाथ की अंगुलियां। जब तुम किसी संत की चरण वन्दना करते हो तो उनके चरणों की अंगुलियों की शिराओं से जो ऊर्जा निकलती है, वह तुम्हें प्राप्त हो जाती है। उनके पांव के अंगूठे को आँखों में लगाते हो तो उनके चरणों से निकली ऊर्जा का स्पर्श करंट की भांति मनुष्य को सक्रिय कर देता है। तुम जैसे ही चरण-स्पर्श करते हो तो ऊर्जा का इलेक्ट्रिक शॉक लगता है, जिससे तुम्हारी बुद्धि, विवेक, ज्ञान, इन्द्रियाँ उद्वेलित होकर कार्यरत एवं क्रियाशील हो जाती हैं। संत चरणों से ऊर्जा मिलती है, जिसे प्राप्त कर आत्मा ऊर्ध्वारोहण कर सकता है । (घ) मनुष्य तभी तक जीवित रहता है जब तक उसके शरीर में ओजस्वी ऊर्जा होती है। यदि उसमें ओजस्वी ऊर्जा नहीं होती तो वह मर जाता है। इसलिए हमको प्राणायाम करना चाहिए (साँस द्वारा ओजस्वी ऊर्जा या प्राणशक्ति को नियंत्रण करने की कला ) । - हठयोग प्रदीपिका (योग पर प्राचीन ग्रंथ से उद्धृत) " (सन्दर्भ- "मैं सिखाने नहीं, जगाने आया हूं' नामक शास्त्र के पृष्ठ ६८- ६६, भाषणकर्ता परम पूज्य श्री १०८ तरुण सागर जी, स्थान जामा मस्जिद के सामने, भोपाल, दिनांक १२ जनवरी १६६४ - सम्पादक श्री मुकेश नायक, उच्च शिक्षा राज्य मंत्री, मध्य प्रदेश शासन ) ४.५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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