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भाषा विज्ञान के अनुसार प्रत्येक अक्षर का अपना-अपना स्वरूप होता है। जिस प्रकार किसी व्यक्ति के स्वरूप में उसकी शारीरिक रचना, चाल, व्यवहार, चारित्र आदि समाहित होते हैं जिसका अपना विशेष प्रभाव होता है, उसी प्रकार अक्षर के स्वरूप में उसकी समस्त बातें सम्मिलित रहती हैं जिसका अपना प्रभाव रहता है। ___योग शास्त्र के अनुसार शरीर का कोई अंग ऋण विद्युत की प्रधानता वाला है और कोई धन विद्युत की प्रधानता वाला है। जीभ ऋण (Negative) विद्युत की प्रधानता वाली है तथा मस्तिष्क धन (Positive) विद्युत का केन्द्र है। तालु मस्तिष्क की निचली परत होने से जीभ के द्वारा तालु पर घर्षण होने से ऋण विद्युत और धन विद्युत का मिलान होने को तरंगे झवाडित होकर आज्ञाचक्र को जागृत करती हैं। जीभ को भावना पूर्वक तालु के मध्य भाग में लगाने से आत्म रति जैसा उद्देश्य पूरा होता है। इससे एक विशेष प्रकार से आध्यात्मिक स्पन्दन आरम्भ होते हैं। उत्पन्न उत्तेजना से ब्रह्मानन्द की अनुभूति होती है। योग शास्त्र के अनुसार तालु के मूल भूमध्य में आज्ञाचक्र है वहाँ चन्द्रमा का स्थान है, उसका मुख नीचे की ओर है। वह अमृत की वर्षा किया करता है। उस अमृत वर्षा से देह की नाड़ियाँ भर जाती हैं एवं योगी का शरीर दिव्य बन जाता है। उसका आभामण्डल प्रभावशाली हो जाता है। हारमोन्स का भी यही प्रभाव है।
णमोकार महामंत्र में 'ण' शब्द का प्रयोग १४ बार हुआ है। एक माला में 'ण' शब्द का प्रयोग १५१२ बार लयबद्ध उच्चारण करते रहने से जीभ तालु से लगती रहती , है। उसके फल में आज्ञा चक्र को जागृत करती है। इस प्रकार 'ण' शब्द का बार-बार उच्चारण करने से ये लाभ सहज में ही हो जाते हैं। इससे शरीर की आध्यात्मिक, मानसिक एवं शारीरिक पुष्टता के साथ बीमारियों को रोकने की अवरोधक शक्ति बढ़ती है तथा बीमारियां हों तो दूर हो जाती हैं। यही कारण है कि कई महानुभाव कहते हैं कि नमस्कार मंत्र के जाप से उनकी अमुक बीमारी दूर हो गई। जामनगर के शा० गुलाबचन्द खीमचन्द का उदाहरण उल्लेखनीय है। वे कैंसर के रोगी थे। अपने
'यह गणना णमोकार मंत्र एवम् मंगलं पाठ की अपेक्षा से है, यथा
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं. णमो लोए सव्व साहूणं । एसो पंच णमोक्कारो, सब पापं पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढ़मं हवइ मंगलम् ।।
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