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की शुद्धि होती है, एकाग्रता बढ़ती है, कुछ ग्रन्थियां हारमोन्स उत्पन्न करती है जिससे मनुष्य को बीमारियां नहीं होती तथा बीमारियां हों, तो दूर हो जाती हैं। इससे, मनुष्य की बीमारियों व संकटों का अवरोध करने की शक्ति बढ़ जाती है।
___मंत्राक्षरों में 'ओम्' शब्द का बहुत उपयोग होता है। इसका जाप भी हास, दीर्घ तथा सुप्त-रूप होता है। साधारणतः इस शब्द का जोरदार, लम्बा मधुर उच्चारण करने से निम्नलिखित स्थिति बनती है :
मूलाधार से अपान वायु व नाड़ियां ऊपर की ओर खिचेंगी, साथ ही प्राण वायु मुख के द्वारा अन्दर ली जायेगी जो छाती में इकट्ठी हो जाएगी। 'ओम्' का पूरा उच्चारण होने पर मुंह बन्द हो जावेगा। मणिपुर चक्र (नाभि) हल्के से पीठ की तरफ दबेगा जो आंशिक उड्डियान बन्ध करेगा तथा अनाहत चक्र के पास छाती में प्राणवायु और अपान वायु का कुम्भक हो जायेगा।
__इस क्रिया से भिन्न-भिन्न चक्रों से जागृत होने के साथ, शरीर के अन्दर की भिन्न-भिन्न ग्रन्थियों से जो स्राव होता है उनके फलस्वरूप सारे शरीर में जो प्रभाव होगा, उमा बूढ़ा भी जावान हो जाता है।
नमस्कार महामंत्र में कई महानुभाव 'णमो' शब्द के स्थान पर 'नमो' शब्द का उपयोग करने लग गये है। णमो और नमो का शब्दार्थ एक ही है। इसमें नमन, विनय, समर्पण आदि का भाव है। नमो शब्द भी विनय रूप होने से लौकिक कार्य में सिद्धि का हेतु बन जाता है किन्तु नमरकार महामंत्र में केवल लौकिक ही नहीं, अपितु शारीरिक एवं पारलौकिक सिद्धि का हेतु भी छिपा है। अतः उस अपेक्षा से उस मंत्र के णमो शब्द का रहस्य, उपयोगिता, परिणाम जानना भी आवश्यक है।
शब्द चाहे किसी भाषा का हो, मंत्र है। अक्षर अथवा अक्षर के समूहात्मक शब्दों में अपरिमित शक्ति निहित है। मंत्रों के वांछित फल प्राप्त करने के लिए मंत्र योजक की योग्यता, मंत्र योजक की शक्ति, मंत्र के वाच्य पदार्थों की शक्ति, उन वाच्य पदार्थों से होने वाले शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, सौरमण्डलीय शान्ति का प्रभाव तो है ही, साथ ही मंत्र साधक की शक्ति, आत्मा में स्थित भाव, अखण्ड विश्वास, श्रद्धा, आत्मिक तेज, मंत्र की शुद्धि, मंत्र की सिद्धि आदि का विचार भी आवश्यक है।
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