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________________ (च) प्राणिक ऊर्जा चिकित्सा- इसका विस्तृत वर्णन भाग ५ में किया गया है। (छ) रेकी (Reiki) - इसका सिद्धान्त व प्राणिक ऊर्जा चिकित्सा पद्धति लगभग एक सा है। रेकी पद्धति में रोगी के शरीर का स्पर्श होता है, जबकि प्राणिक ऊर्जा चिकित्सा रोगी के शरीर को बगैर स्पर्श किये की जाती है। (ज) शिवांबु-स्वमूत्र चिकित्सा – यह घृणित होने के कारण अनुशंसनीय नहीं (१२) बारह क्षार – बायोकैमिक दवाएँ समुद्र और हमारे शरीर, दोनों का पानी समान है। हम जो पानी पीते हैं, उसमें शरीर या समुद्री पानी के क्षार नहीं होते। ये क्षार हमें सब्जी फल और आहार से मिलते हैं। शरीर को यदि पर्याप्त मात्रा में ये क्षार न मिलें, तो इसकी कमी से शरीर में कई रोग हो जाते हैं। मगर क्षार लेने से ये रोग मिट जाते हैं। इस विषय पर अनुसंधान करने वाले जर्मनी के डॉ. शुस्लर ने प्रतिपादित किया है कि हमारे शरीर में करोड़ों सूक्ष्म कोष हैं। बारह प्रकार के क्षार सूक्ष्म मात्रा में देने से इन कोषों की क्षति पूर्ति होती है और वे अपना कार्य ठीक से कर सकते हैं। ये क्षार पहले २०० पावर के और सप्ताह के अन्य छह दिनों में १२ या ३० पावर के देने चाहिए। आवश्यकतानुसार चार से लेकर छह सप्ताह तक का कोर्स करें। यह पद्धति एकदम निर्दोष है। रोगी इसे समझकर स्वयं इसका प्रयोग कर सकता है। आवश्यक्ता के अनुसार एक से अधिक क्षार दवाओं के संयोजन किए जा सकते हैं। बच्चों के लिए ये उत्तम है। एक्युप्रेशर चिकित्सा के साथ ऐसी दवाएँ लेने से और भी जल्दी लाभ होता है।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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