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________________ | T I (ग) छोटे चिरागदान में दीया जलाकर नाभि पर रखिए। उसके ऊपर पीतल या स्टील के गिलास को उल्टा रखकर रखिए। इससे गिलास की हवा के जल जाने पर शून्य (vacuum) उत्पन्न हो जावेगा, जो नाभिचक्र को सरका कर केन्द्र में लाएगा। एक मिनट के बाद गिलास को एक तरफ से ऊपर उठा लीजिए। जब तक धड़कन केन्द्र में न आ जाये, तब तक यह प्रयोग तीन-चार बार कीजिए। इसके बाद सौंठ वाला गरम पानी या गरम दूध पीजिए । (घ) बाएँ हाथ की कोहनी के जोड़ में अन्दर की तरफ दाँए हाथ की हथेली जमाइए और झटके से बाँए हाथ के अंगूठे द्वारा बाँये कंधे का स्पर्श कीजिए। जब तक यह अंगूठा बाँए कंधे का स्पर्श न करे, तब तक यह प्रयत्न जारी रखिए। इसी प्रकार यह क्रिया दाए हाथ में कीजिए । जब भी कब्जियत अथवा दस्त की तकलीफ हो, तो इस बात की जाँच कीजिए कि नाभि चक्र सही हालत में है या नहीं। ठीक हालत में न होने पर उसे ठीक कीजिए । अध्याय - ६ त्वचा की देखभाल त्वचा में छिद्र होते हैं। इन छिद्रों द्वारा शरीर का विष बाहर निकलता है, अतएव इसकी देखभाल आवश्यक है। इसके लिए (9) ६-८ गिलास पानी पीजिए । (२) ठंडे मौसम में तिल, मूंगफली आदि तैलीय पदार्थ यथेच्छ खाइए । प्रत्येक ऋतु के फल-सब्जी का सेवन कीजिए । (3) समय - समय पर पूरे शरीर में तेल की मालिश कीजिए। (8) नियमित प्राणायाम कीजिए व सुविधानुसार सूर्य स्नान कीजिए । ३.२५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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