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अध्याय-- ५ नाभि चक्र
कभी -कभी नाभिचक्र अपनी स्थिति से हट जाने के कारण अनेक तकलीफें हो जाती हैं, जो दवा आदि से ठीक नहीं हो पातीं। इसके लिए समय-समय पर या जब आवश्यकता हो, नाभि चक्र की परख जरूरी है। इसकी निम्न विधियाँ हैं। (क) सुबह खाली पेट सीधे लेटकर यदि नाभि पर उंगली या अंगूठे से
दबाया जाये, तो वहां हृदय की धड़कन महसूस होगी। ऐसी धड़कन
महसूस होने पर समझ लें कि नाभिचक्र सही हालत में है। (ख) सही नाभि चक्र की दशा में नाभि से दाँए एवं बाँए स्तनाग्र की दूरी
समान होगी। (ग) चित्र ३.०२ में दर्शायी गयी दोनों हाथों की कनिष्ठ उंगलियों के पोटुओं
के बीच की समस्त लाइनें एवमं हथेली की चिन्हित लाइन 1 एक दूसरे
से मिली होती हैं, तो समझें कि नाभि चक्र सही स्थिति में है। नाभि चक्र खिसकने का कारण अत्यधिक वजन उठाना अथवा अत्यधिक गैस उत्पन्न होना होता है। इसको ठीक करने के लिए निम्न पद्धतियों अपनायी जा सकती हैं। ये सभी प्रयोग खाली पेट या भोजन के ३-४ घंटे बाद किए जा सकते हैं। (क) अंगूठे से नाभि के इर्द-गिर्द दबाव देकर नाभिचक्र को केन्द्र की ओर
ठेलना। (ख) सीधे लेट जाइये और दोनों हाथ शरीर से सटाकर रखिए। किसी से
अपने दोनों घुटनों पर दबाव देने के लिए कहिए। पैर का जो अंगूठा निचले सतह पर हो, उस पैर के घुटने पर भी अधिक दबाव दीजिए। यदि आवश्यक हो, तो दूसरा व्यक्ति एक हाथ में दोनों पैरों के अंगूठे पकड़कर रखे और पैर का जो अंगूठा नीचे हो उसे ऊपर खींचने का प्रयास करें। इस पर भी यदि दोनों अंगूठे एक लाइन में न आ पाएं तो यही क्रिया दोबारा कीजिए।
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