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(७) प्राण मुद्रा (जीवन शक्ति चेतना)
अनामिका और कनिष्ठका उंगलियों को इस तरह मोडिए कि उनके सिरे अंगूठे के सिरे को स्पर्श करें।
लाभ- जीवन शक्ति में वृद्धि होती है, शिथिलता व थकान दूर होती है। आँखों का तेज बढ़ता है और चश्मा हटने में मदद मिलती है। (८) शिवलिंग मुद्रादोनों हथेलियों की सभी उंगलियों को चित्र में दर्शाए अनुसार एक-दूसरे में इस तरह भिड़ाइए कि दाएँ हाथ का अंगूठा ऊपर की ओर खड़ी स्थिति में ऊँचा रहे तथा बाएं हाथ के अंगूठे व तर्जनी अंगुली से उसे घेर ले। लाभ- सर्दी जुकाम, छाती के रोग, कफ, ऋतु-परिवर्तन से होने वाली सर्दी और बुखार आदि का प्रतिकार करने की शक्ति देती है। फेंफड़ों को शक्ति प्रदान करती है। शरीर में गरमी बढ़ाकर वृदधिंगत कफ और चरबी को जला डालती है। इस मुद्रा को करने वाले व्यक्ति को प्रतिदिन पानी, हरा रस. फल का रस आदि प्रवाही प्रचुर मात्रा में लेना चाहिए।
यह मुद्रा करते समय यदि प्राणायाम भी किया जाए तो अच्छा परिणाम निकलता है। श्वास को अधिक समय तक फेफड़ों में रोकने की कला (चित्र ३.०२)
जब आप सांस को भीतर लें तब अपने अंगूठे के ऊपर वाले भाग 1 को उंगली से दबाएँ। ऐसा करने से सांस को ज्यादा समय तक भीतर रोका जा सकेगा। अंगूठे के मध्य भाग (भाग 2) में यदि इस प्रकार दबाव दिया जाए, तो सांस को और भी अधिक समय तक रोका जा सकेगा। अंगूठे के मूल (भाग 3) में भी यदि इसी प्रकार दबाव दिया जाए तो सांस को बहुत अधिक समय तक भीतर सरलता से रोका जा सकेगा।
यदि सांस-प्राण वायु को फेंफड़ों में ज्यादा समय तक रोक सकें, तो उसका पूरा-पूरा उपयोग होता है। रक्त्त एवम् शरीर को अधिक बल मिलता है।
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