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लाभ- संधिवात-आर्थाइटिस, पक्षाघात, संधिवात-गाउट, कंपवात और रक्तपरिभ्रमण के दोष का दूर होना। ज्यादा अच्छे परिणाम के लिए इसके बाद प्राण मुद्रा भी करें। (३) शून्य मुद्रा
___ मध्यमा उंगली को मोड़कर शुक्र पर्वत पर रखें और चित्र में दर्शाए अनुसार उसे अंगूठे से दबा कर रखें।
लाभ- कानदर्द, बहरापन, चक्कर आना {vertigo) आदि तकलीफों में लाभ । अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिये इस मुद्रा को ४० से ६० मिनट तक करना जरूरी
है।
(४) पृथ्वी मुद्रा
अनामिका उंगली से चित्र में दर्शाए अनुसार अंगूठे का स्पर्श करें।
लाभ- तन और मन की कमजोरी दूर होती है, चेतना बढ़ती है। बीमार व्यक्ति को ताजगी मिलती है और मन को शांति मिलती है। (५) वरुण मुद्रा
कनिष्ठका उंगली को अंगूठे के नोंक से चित्र में दर्शाए अनुसार स्पर्श करें।
लाभ- रक्त की अशुद्धि दूर होती है। चर्म रोग में फायदा होता है और त्वचा मुलायम होती है। शरीर मे पानी का जमाव करने वाले गैस्ट्रोएन्टेटिस सदृश रोगों में लाभदायी है। (६) सूर्य मुद्रा (अग्नि मुद्रा)
अनामिका उंगली को मोड़िए और चित्र में दर्शाए अनुसार उसके बाहरी भाग में दूसरे पोटूए पर अंगूठे से दबाव दें।
लाभ- शरीर में अग्नि-गरमी बढ़ती है। पाचन में मदद मिलती है और चर्बी घटती है।
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