________________
(
विरोधी आहार का सेवन करने से विकृति होती है और शरीर व रक्त में खराबी उत्पन्न होती है। इसलिए बिना गरम किये दूध, दुग्ध- निर्मित पदार्थों एवं दही/छाछ के साथ दलहन, एन्टीबायोटिक व खट्टे फलों का सेवन न करें।
अध्याय- ७
आँखों की देखभाल
(१) दिन में स्वस्थ खुले वातावरण में खड़े होकर हाथों को कमर पर
रखकर, सामने की ओर देखकर बगैर शरीर अथवा आंखों को हिलाकर, मात्र पुतलियों को घड़ी की दिशा में ३ बार, फिर घड़ी की उल्टी दिशा में ३ बार, फिर घड़ी की दिशा में ३ बार, फिर घड़ी की उल्टी दिशा में ३ बार, फिर घड़ी की दिशा में ३ बार, फिर घड़ी की उल्टी दिशा में ३ बार, फिर घड़ी की दिशा में ३ बार, फिर घड़ी की उल्टी दिशा में ३ बार, इस प्रकार घड़ी की दिशा में कुल मिलाकर १२ बार और घड़ी की उल्टी दिशा में भी १२ बार आँखों को बड़ा सा गोला बनाते हुए घुमाइये। कुछ अभ्यास के बाद एक साथ ही १२-१२ बार घुमा सकते हैं। इसके बाद हथेलियों से आंखों को दबाकर आँखों को विश्राम दीजिए। यह प्रक्रिया प्रतिदिन कीजिए। इसका वर्णन भाग ५ अध्याय ३ में खुलासा किया गया है। सुबह कुल्ला करते समय ताजे पानी से २८-३० बार आँखों में छींटे
मारिये। (३) सुबह उगते सूर्य की ओर ८-१० सेकेन्ड तक लगातार बगैर पलक
झपकते हुए देखिये।
धूप अथवा धूलयुक्त वातावरण से लौटकर आँखों को पानी से धोइये। (५) हरी सब्जियाँ व फल खाइये। (६) विशेषकर प्रौढ़ावस्था में डाक्टर रैकेवैग (Dr. Reckeweg) की सिनेरिया
मैरीटीमा (Cineraria Maritima) नामक जर्मन होम्योपैथिक दवा की
३.२६