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________________ आत्मा को वापस अपने शरीर में प्रविष्ठ करा लें। फिर अपने हाथ व पैर की उँगलियाँ चलाकर, मुस्कराते हुए धीरे-धीरे आँखें खोलिए। यदि आपके पास समय की कमी है, तो मात्र कुछ मिनटों के लिए उक्त प्रकार से लेटकर अपना शरीर ढीला छोड़ दीजिए। नोट- (१) उपरोक्त वर्णित प्रातः भ्रमण, प्राणायाम, योगासन, व्यायामादि में काफी समय लगता है, जिसका प्रायः अभाव होता है तथा सबको करना क्षमता से अधिक हो जाता है। अतएव इसके लिए इनमें अपनी सुविधानुसार कमी कर सकते हैं। कभी योगासन न करें, कभी प्रातः भ्रमण में कुछ कटौती कर दें, कभी प्राणायाम की अवधि में कटौती कर दें, कभी शारीरिक व्यायाम न करें, कभी आगे भाग ५ के अध्याय ३ के क्रम (ग) में वर्णित प्राणिक व्यायाम न करें, किन्तु सबको मिलाकर लगभग ४५-६० मिनट तक तो अवश्य ही करें। यह अनुशंसा की जाती है कि प्रातः भ्रमण और प्राणायाम, चाहे अल्प मात्रा में ही क्यों न हो, तो अवश्य ही करें। (द) वजासन भोजन करने के बाद यह एकमात्र आसन है। ध्यान मूलाधार चक्र में रखते हुए बिछे आसन पर दोनों पैरों को घुटने से मोड़कर दोनों ऐड़ियों पर बैठ जायें, पैर के दोनों अंगूठे आपस में मिले रहें। पैर के तलवों पर नितम्ब रखें। कमर और पीठ बिल्कुल सीधी रहे, दोनों हाथों को घुटनों पर रखें। दृष्टि सामने स्थिर रख दें। पांच से तीस मिनट तक यह आसन करें। भोजन के बाद इस आसन को करने से पाचन शक्ति तेज होती है, भाजन जल्दी हजम होता है। पेट की वायु का नाश होता है, पेट के रोग नष्ट होते हैं। शरीर में शक्ति बढ़ती है, स्मरण शक्ति बढ़ती है। शरीर की प्रतिरक्षात्मक शक्ति बढ़ती है। स्त्रियों के मासिक धर्म की अनियमितता जैसे रोग दूर होते हैं। शुक्र दोष, वीर्य दोष, घुटनों के दर्द आदि का नाश होता है। स्फूर्ति बढ़ाने और मानसिक निराशा दूर करने के लिए ये आसन उपयोगी है। (२) प्राणायाम, योगासन, बंध अनेक प्रकार के होते हैं जिनका वर्णन ऊपर नहीं दिया है जैसे ३१८
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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