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________________ (arm), कोहनी, हाथ, कलाई, हथेली एवम् उसकी उंगलियाँ (६) कंधे से लेकर पीछे नीचे कमर तक पूरी पीठ (७) हृदय एवम् थाइमस ग्रंथि (thymus gland) (८) फेंफड़े और फेंफड़ों का पिजंरा (thoracic cage) तथा डायफ्राम (diaphragn) (६) ग्रसिका (oesophagus), जठर (stomach), यकृत (liver), पित्ताशय (gall bladder), अग्न्याशय (pancreas), प्लीहा (spleen) (१०) पक्वाशय (duodenum), क्षुद्रान्त, बृहद आँत, मलाशय (rectum), गुदा (anus) (११) गुर्दे (kidneys), तथा अधिवृक्क ग्रंथियाँ (adrenal glands) (१२) मूत्र वाहिनी (ureter tubes), मूत्राशय (bladder), प्रोस्टेट ग्रंथि (prostate gland), मूत्र मार्ग (urethra) (१३)नाभि तथा उसका आसपास का क्षेत्र (१४) समस्त यौनांगों, तथा पैरिनियम (perineum) और पैरिटोनियम (peritonium) (१५) नितम्ब (hips) (१६) जाँघ, घुटने, टाँग, टखना तथा पैर एवं उसकी उँगलियों के प्रति भावना करें। से सब भावनायें एवम् विश्रान्ति की अनुभूति उक्त क्रम से अलग-अलग ऊपर सिर से प्रारम्भ करते हुए नीचे पैरों तक करना है। फिर सोचें कि मेरा समस्त शरीर आराम कर रहा है और इसमें पूर्ण विश्रान्ति है एवम् शव के समान हो गया है। इसकी अनुभूति भी करें। ___ अब विचार करें कि आत्मा शरीर से ऊपर निकल आई है और शरीर मात्र शव पड़ा है। इसको तटस्थ भाव से, निःसंग भाव से देखें। फिर आत्मा को भाव से विदेह क्षेत्र में ले जाकर वहाँ विराजमान सीमंधरादि तीर्थंकरों (देखिए चित्र १,०६) के चरणों में नमोऽस्तु, शिरोनति एवम् आवर्त करें। इसी प्रकार त्रिलोक में समस्त केवली भगवानों, गणधरों, आचार्यों, उपाध्यायों, सर्व साधुओं, जैन धर्म, जिनवाणी, निर्वाण क्षेत्र, अतिशय क्षेत्र एवं अन्य पुन्य भूमियों, सोलहकारण भावना. दशलक्षण धर्म, रत्नत्रय, चौआराधना, पञ्चाचार, कृत्रिम अकृत्रिम जिन भवनों, जिन बिम्बों के प्रति नमोऽस्तु, शिरोऽनति, आवर्त करें। समस्त आर्यिकाओं को वन्दामि करें, समस्त ऐलकों, क्षुल्लकों, क्षुल्लिकाओं को इच्छामि एवम् समस्त श्रावक, श्राविकाओं को जय जिनेन्द्र कहें। फिर अपनी आत्मा को सिद्धालय ले जाएं और वहां विराजमान श्री ऋषभादि चतुर्विंशति तीर्थकरों, श्री बाहुबलि आदि सिद्ध भगवान एवम् समस्त अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठियों के चरणों में नमोऽस्तु. शिरोऽनति और आवर्त करें तथा उनके चरणों में मग्न होकर दिव्य आनन्द का अनुभव करें। ध्यान करें कि उनके चरणों से अनुपम अवर्चनीय अमृत निकलकर आपके समस्त आत्मा में भर रहा है, जिसके अनुपम आनन्द में आप मग्न हैं। इसके पश्चात् जब आपको वापस लौटना हो, तो सिद्ध भगवान से मुक्ति की प्रार्थना करते हुए अपनी ३.१७
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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