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________________ ܀ (क) सिंहासन आँखें बन्द कर, मुँह खोलकर जीभ को गोल बनाकर मुँह से श्वास भरें, फिर नाक से धीरे-धीरे श्वास निकालें। इस क्रम को तीन बार करें। (ख) भ्रमरासन हाथों की तर्जनी और मध्यमा अंगुलियों को भौंहों के ऊपर-नीचे रखें, मध्यमा और कनिष्ठ अंगुलियों को होठों के ऊपरपर-नीचे रखें। दोनों अंगूठों को कानों के अन्दर इस प्रकार रखें कि कान हवा बन्द (air-tight) हो जावे। फिर नाक से पूरक करते हुए. बहुत धीरे-धीरे नाक से ही गुंजायमान करते हुए इस प्रकार श्वास निकालें कि लगेगा कि कानों में भौंरे के गूँजने की आवाज आ रही है। यह मन में विचार लावें कि यह मन की शान्ति के लिये एवम् शरीर के समस्त अवयवों (body tissues) के पारस्परिक समन्वय (Harmonious co-ordination) के लिये है । इस प्रक्रिया को तीन बार करें। (ग) पवन मुक्तासन पीठ के बल लेटें । अपना ध्यान मणिपुर चक्र में रखें। फिर साँस लेते हुए दाँए पैर के घुटने को पेट पर रखें। फिर दोनों हाथों की सहायता से रेचक करते हुए दाँए घुटने को नाक से छुआने का प्रयास करें। इस स्थिति में १० से ३० सेकेन्ड तक बाह्य कुम्भक करें। फिर श्वास लेते हुए पैर सीधा करें। इस क्रिया को फिर बाएँ पैर से करें, फिर एक साथ दोनों पैरों से करें। इस समस्त प्रक्रिया को तीन बार करें। यह आसन उदरगत वायु के लिये उत्तम है। इस आसन से पेट की चर्बी कम होती है। कब्ज दूर होकर पेट विकाररहित होता है। यह सम्भव है कि इस आसन को करते हुए आप पेट के किसी अंग में दर्द महसूस करें। इससे यह विदित होगा कि उस अंग में कोई समस्या है। ऐसी दशा में इसी आसन में अधिक देर तक रखते हुए, उस दर्द को बर्दाश्त करें। यही उस अंग की समस्या का समाधान होगा | (घ) पेट के लिये आसन पीठ के बल लेट जायें। फिर दाँए पैर को उठाकर ३० डिगरी के कोण पर हल्का सा रुकें, फिर ६० डिगरी के कोण पर हल्का सा रुकें, फिर ६० डिगरी के कोण पर या जहाँ तक पैर ऊँचा उठ सके, हल्का सा रुकें, फिर पैर को नीचे लाते हुए ६० डिगरी के कोण पर हल्का सा रुकें, फिर ३० डिगरी के कोण पर से अत्यन्त ही धीमी ३.१३
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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