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(६) योगासन
___ शौचादि से निवृत्त होकर, प्राणायाम के पश्चात खाली पेट करना चाहिए। योगासन भोजन के छह घंटे बाद भी किया जा सकता है। वृद्धों एवं दुर्बल व्यक्तियों को योगासन अल्प मात्रा में करना चाहिए। आसन करते समय शरीर पर वस्त्र कम व सुविधाजनक होने चाहिए। गर्भवती महिलायें कठिन आसनादि न करें। जिनके कान बहते हों, नेत्रों में लाली हो, स्नायु एवं हृदय दुर्बल हो उनको शीर्षासन नहीं करना चाहिए। हृदय दौर्बल्य वाले को अधिक भारी आसन जैसे पूर्ण शलभासन, धनुरासन आदि नहीं करना चाहिए। अण्डवृद्धि वालों को भी वे आसन नहीं करने चाहिए जिनसे नाभि के नीचे वाले हिस्से पर अधिक दबाब पड़ता है। उच्च रक्तचाप वाले रोगियों को सिर के बल किये जाने वाले शीर्षासन आदि तथा महिलाओं को ऋतुकाल में ४-५ दिन आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिये। जिनको कमर व गर्दन में दर्द रहता हो, वे आगे झुकने वाले आसन न करें। जिन व्यक्तियों का कभी अस्थि भंग हुआ हो, वे कठिन आसनों का अभ्यास कभी नहीं करें अन्यथा उसी स्थान पर हड्डी दोबारा टूट सकती है।
आसन करते समय शरीर के साथ जबरदस्ती न करें। आसन कसरत नहीं है, अतः धैर्यपूर्वक आसन करें। चटाई, टाट, कम्बल, दरी या कुछ ऐसा ही बिछाकर आसन करें। खुली भूमि पर बिना कुछ बिछाये आसन कभी न करें, जिससे शरीर में निर्मित होने वाला विद्युत प्रवाह नष्ट न हो जाए। आसन करने के बाद ठंड या तेज हवा में न निकलें। यदि स्नान करना हो तो आधा घंटा बाद करें। आसन करते-करते मध्यान्तर में तथा अंत में शवासन करके, शिथिलीकरण के द्वारा शरीर के तंग बने स्नायुओं को आराम दें। आसन के बाद मूत्र त्याग अवश्य करें, जिससे एकत्रित दूषित तत्त्व बाहर निकल जायें।
दृष्टिः आंखें बन्द करके योगासन करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है, जिससे मानसिक तनाव व चंचलता दूर होती है।
योगासनों का अभ्यास किसी योग्य योग शिक्षक की सलाह से ही करें। निम्न योगासन को साधारण तौर पर किये जा सकते हैं:--
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