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________________ करते हुए बाँए नाक से पूरक करें। फिर अँगूठा हटाकर बाँये नाक अनामिका उंगली. से बंद करके सव्व साहूणं मन में बोलते हुए, सर्व साधुओं के चरणों में भाव. नमस्कार करते हुए दाँये नाक से रेचकः करें। इसी प्रकार कामोतार-त्र का यान करते हुए दाँये-बॉये नाक से पूरक-रेचक करते हुए नौ बार णमोकार मंत्र बोलें। फिर इस क्रम को और समयावधि को अधिकतम १० मिनट तक बढ़ावें । ग्रीष्म काल में इस अवधि को अधिकतम ५ मिनट तक करें। ये प्राणायाम कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया को प्रारम्भ करने में सहायक होती है। লাশ (१) सम्पूर्ण नाड़ियों की शुद्धि होती है, जिससे देह स्वस्थ, कान्तिमय एवं बलिष्ठ बनता है। (२) सन्धिवात, आमवात, गठिया, कम्पवात, स्नायु दुर्बलता आदि समस्त वात रोग, मूत्र रोग, धातु रोग, शुक्रक्षय, अम्ल पित्त, शीत-पित्त आदि समस्त पित्त रोग, सर्दी, जुकाम, पुराना नजला, साइनस, अस्थमा, खांसी, टांसिल आदि समस्त कफ रोग दूर होते हैं। त्रिदोष प्रशमन होता है। हृदय की शिखाओं में आए हुए अवरोध (blockage) खुल जाते हैं। कॉलेस्ट्रोल आदि की अनियमितताएं दूर हो जाती हैं। (५) नकारात्मक चिन्तन में परिवर्तन होकर सकारात्मक विचार बढ़ने लगते हैं। आनन्द, उत्साह व निर्भयता की प्राप्ति होने लगती है। (६) संक्षेप में कह सकते हैं कि इस प्राणायाम से तन, मन, विचार व संस्कार सब परिशुद्ध होते हैं। देह के समस्त रोग नष्ट होते हैं तथा मन परिशुद्ध होकर पंच परमेष्ठी के ध्यान में लीन होने लगता है। मन ध्यान की उन्नत अवस्था के योग्य बनता है। (५) व्यायाम जो व्यायाम आपको अपने अनुभव से लाभप्रद हो, उसको करें। इसके अतिरिक्त प्राणिक व्यायाम जिसका वर्णन भाग ५ के अध्याय ३ में दिया है, करें। इससे शरीर के समस्त अवयव स्वस्थ रहते हैं।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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