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लाभ
(9) मस्तिष्क व मुख मण्डल पर ओज, तेज, आभा व सौन्दर्य बढ़ता है । (2) समस्त कफ रोग, दमा, श्वास, एलर्जी, साइनस आदि रोग नष्ट होते हैं
(3)
हृदय, फेंफड़ों व मस्तिष्क के समस्त रोग दूर होते हैं। हृदय की शिराओं में आए हुए अवरोध (Blockage) खुल जाते हैं ।
(8)
मोटापा, मधुमेह (diabetes) गैस, कब्ज, अम्ल पित्त, गुर्दे व प्रोस्टेट से सम्बन्धित सभी रोग निश्चित रूप से दूर होते हैं ।
(५)
मन स्थिर, शान्त व प्रसन्न रहता है। नकारात्मक विचार नष्ट हो जाते हैं जिससे मायूसी (depression) आदि रोगों से छुटकारा मिल जाता है। समस्त चक्रों का शोधन होता है।
(६)
(0) आमाशय, अग्न्याशय (Pancreas), यकृत (Liver), प्लीहा (Spleen), आन्त्र (Intestines), गुर्दे (Kidneys ) का आरोग्य विशेष रूप से बढ़ता है। पेट के लिए बहुत से आसन करने पर भी जो लाभ नहीं हो पाता, मात्र इस प्राणायाम के करने से ही सब आसनों से भी अधिक लाभ हो जाता है। दुर्बल आंतों को सबल बनाने के लिए यह प्राणायाम सर्वोत्तम है।
(ग) अनुलोम-विलोम प्राणायाम
दाँये हाथ की तर्जिनी एवम् मध्यमा उंगलियों को दोनों भौंहों के बीच में जहाँ आज्ञा चक्र है (देखिये चित्र ३.०१) पर रखें और प्राणायाम के अन्त तक वहीं रखे रहें । पूरे प्राणायाम के दौरान आंखें बंद रहेंगी। फिर अँगूठे से दाहिने नाक को बन्द करके णमो अरिहंताणं मन में बोलते हुए, अरिहंतों को भाव नमस्कार करते हुए बाँये नाक से पूरक करें। फिर अँगूठा हटाकर बाँये नाक को अनामिका अंगुली से बन्द करके णमो सिद्धाणं मन में बोलते हुए, सिद्धों के चरणों में भाव नमस्कार करते हुए दाँयें नाक से रेचक करें। फिर णमो आइरियाणं मन में बोलते हुए, आचार्यों को भाव नमस्कार करते हुए दाँये नाक से पूरक करें। फिर अनामिका उंगली हटाकर दाँये नाक अंगूठे से बंद करके णमो उवज्झायाणं मन में बोलते हुए, उपाध्यायों के चरणों में भाव नमस्कार करते हुए बाँए नाक से रेचक करें। फिर णमो लोए मन में बोलते हुए सर्व साधु का ध्यान
३.१०