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________________ 1 करें कि ब्रह्माण्ड में विद्यमान दिव्य शक्ति, ऊर्जा, पवित्रता, शान्ति व आनन्द आदि जो भी शुभ है, वह प्राण के साथ मेरे देह में प्रविष्ट हो रहा है। इस प्रकार से किया हुआ प्राणायाम विशेष लाभप्रद होता है। लाभ (9) (2) (3) सर्दी-जुकाम, एलर्जी (Allergy), श्वास रोग, दमा, पुराना नजला, साइनस आदि समस्त कफ रोग दूर होते हैं। फेंफड़े सबल बनते हैं तथा हृदय व मस्तिष्क को भी शुद्ध प्राण वायु मिलने से आरोग्य लाभ होता है। थायराइड (Thyroid) व टॉन्सिल आदि गले के समस्त रोग दूर होते हैं । त्रिदोष सम होते हैं। रक्त परिशुद्ध होता है और शरीर के विषाक्त, विजातीय द्रव्यों का निष्कासन होता है F प्राण व मन स्थिर होता है। (ख) कपाल - भाति प्राणायाम कपाल अर्थात मस्तिष्क और भाति का अर्थ होता है दीप्ति, आभा, तेज। जिस प्राणायाम के करने से मस्तिष्क याने माथे पर आभा, ओज व तेज बढ़ता हो वह प्राणायाम है कपाल - भाति। इसमें मात्र रेचक अर्थात श्वास को शक्तिपूर्वक बाहर छोड़ने पर ही पूरा ध्यान दिया जाता है। श्वास को भरने के लिये प्रयत्न नहीं करते अपितु सहज रूप से जितना श्वास अन्दर चला जाता है जाने देते हैं, पूरी एकाग्रता श्वास को बाहर छोड़ने में ही होती है। ऐसा करते हुए स्वाभाविक रूप से पेट में भी आकुंचन व प्रसारण की क्रिया होती है। इस प्राणायाम को करते समय मन में ऐसा विचार करना चाहिये कि जैसे ही मैं श्वास को बाहर छोड़ रहा हूं, इस प्रश्वास के साथ मेरे शरीर के समस्त रोग बाहर निकल रहे हैं, नष्ट हो रहे हैं। जिसको जो शारीरिक रोग हो उस दोष या विकार, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, राग-द्वेष आदि को बाहर छोड़ने की भावना करते हुए रेचक करना चाहिए। इस प्राणायाम को तीन से पांच मिनट तक करना चाहिए। प्रारम्भ में पेट या कमर में दर्द हो सकता है। वह धीरे-धीरे अपने आप मिट जायेगा। ग्रीष्म ऋतु में पित्त प्रकृति वाले करीब दो मिनट ही यह अभ्यास करें। ३.९
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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