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(४) प्राणायाम के लिये पद्मासन, वजासन, अर्धपद्मासन अथवा सुखासन में बैठना
चाहिये, जिसमें आकुलता न हो। यदि किसी भी आसन में बैठना सम्भव न हो, तो कुर्सी पर भी सीधे बैठकर कर सकते हैं, परन्तु रीढ़ की हड्डी सदा सीधी
रखें। आसन विद्युत का कुचालक होना चाहिए। (५) शुरू में पाँच मिनट तक करें, बाद में आधा घंटा तक बढ़ा सकते हैं। प्राणायाम
नियत संख्या में करें, कम या ज्यादा न करें। (६) प्राणायामों को अपनी प्रकृति एवम् ऋतु के अनुकूल करना चाहिए। (७) प्राणायाम करते हुए यदि थकान अनुभव हो, तो दूसरा प्राणायाम करने से पहले
५-६ सामान्य दीर्घ श्वास लेकर विश्राम कर लेना चाहिए। (c) गर्भवती महिला, भूख से पीड़ित, ज्वर रोगी आदि व्यक्ति को प्राणायाम नहीं
करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को प्राणाचान के साथ दी गई सावधानी का ध्यान करते हुए करना चाहिए। प्राणायाम करने से पूर्व ओऽम् का लम्बा नादपूर्वक उच्चारण करना उचित है।
ऐसा करने से मन शान्त एवम् एकाग्र हो जाता है। (१०) प्राणायाम का अभ्यास धीरे-धीरे, उतावले हुए बगैर, धैर्यपूर्वक, सावधानी के साथ
करना चाहिए।
(६) प्राण
प्राणायाम कई प्रकार के हो सकते हैं, किन्तु निम्न प्राणायामों की अनुशंसा की जाती है :(क) भस्त्रिका प्राणायाम
नाक से श्वास को पूरा अन्दर डायफ्राम तक भरना तथा बाहर भी पूरी शक्ति के साथ छोड़ना होता है। पेट को नहीं फूलना चाहिए। जिनके फेंफड़े व हृदय कमजोर हों अथवा उच्च रक्तचाप या हृदय रोग हो, वे इसको मन्द गति से करें। बाकी लोग मध्यम गति से बढ़ाते हुए तीव्र गति से करें। इस प्राणायाम को ३ से ५ मिनट तक करना चाहिए। इस प्राणायाम को ग्रीष्म ऋतु में अल्प मात्रा में करें। प्राणायाम करते समय आँखें बन्द रखें और मन में श्वास-प्रश्वास के साथ ओऽम् का मानसिक रूप से चिन्तन व मनन करें। श्वास को अन्दर भरते समय यह मन में विचार
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