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अध्याय-- ३ शारीरिक एवं मानसिक सक्रियता शारीरिक एवम् मानसिक स्वस्थता के लिये, इनकी सक्रियता अत्यावश्यक है। (१) जापानी जल पद्धति
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच जाने एवम् दाँतों की सफाई से पूर्व, ताजा १. २५ लीटर पानी पी जायें। जाड़े की ऋतु में इसे गुनागुना कर पी सकते हैं अथवा रात्रि को थर्मस में रख सकते है। यदि इतना पानी शुरू में न पी सकें, तो धीरे-धीरे मात्रा को बढ़ाते हुए एक माह में सवा लीटर की मात्रा तक पहुँच जाये | शरीर में जो कोई भी आन्तरिक रोग होगा, उसकी प्रतिकार स्वरूप दवा स्वभावतः प्रकृति द्वारा जीभ के ऊपर मैल के रूप में बनती है। पानी पीने से एक तो वह दवा पेट में पहुँचकर फायदा पहुंचाती है, दूसरे यह पानी आँतों की सफाई करता है और दस्त को ठीक करता है। कब्ज को दूर करने में सहायक होता है। उपरोक्त पानी पीकर ४५ मिनट तक कुछ खाना-पीना नहीं चाहिए। (२) दाँतों एवम् आँखों की देखभाल
शौच जाने के पश्चात दाँत और मुँह की सफाई करें। कोई शुद्ध शाकाहारी मंजन/पेस्ट का ही प्रयोग करें। बबूल, नीम, वीको वजदन्ती आदि पेस्ट अथवा मंजन इसके अन्तर्गत आते हैं। नीम की दातून अथवा बबूल की दातून का भी उपयोग कर सकते हैं। समुचित लाभ के लिये एक दिन मंजन तथा दूसरे दिन पेस्ट का प्रयोग करें ताकि दाँतों की तथा उनके बीच की जगह अच्छी तरह साफ हो सके। ज्यादा अच्छा होगा कि पहले मंजन/पेस्ट करके तीन-चार मिनट तक छोड़ दें, ताकि उसके द्वारा मसूढ़ों पर स्वस्थकारी प्रभाव पड़ सके, फिर कुल्ला करें। इस दौरान, हजामत बनायी जा सकती है। आँखों को साफ करके २८-३० दफा ताजे पानी से छींटे मारें, इससे प्रौढ़ अवस्था में मोतियाबिन्द (Cataract) का बढ़ना कम होता है अथवा रुकने में सहायता मिलती है। आँखों के देखभाल के विषय में विशेष तौर पर अध्याय ७ में वर्णन देखिए।