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________________ मनुष्यों में सभी छह लेश्यायें पाई जाती हैं। पर्याप्त मनुष्य राशि का प्रमाण २६, अंक नाम है या १६.८०७०४०६२८.५६६०,४३६८३८५६८.७५८४ है और पर्याप्त मनुष्यिणी राशि का प्रमाण ३० अंक प्रमाण यथा ५६४२११२१८८५६६८२५३१६५१५७६६२७५२ है। अन्तर्वीपज, कुभोगभूमिज मनुष्य सबसे थोड़े हैं, इनसे संख्यात गुणे १० कुरुक्षेत्रों (देवकुरु, उत्तर कुरु) में हैं। इनसे संख्यात गुणे हरिवर्ष और रम्यक क्षेत्रों में हैं, इनसे संख्यात गुणे हैरण्यक्त और हैमवत क्षेत्रों में हैं, इनसे संख्यात गुणे भरत और ऐरावत क्षेत्रों में हैं और इनसे भी संख्यात गुणे विदेह क्षेत्रों में हैं। लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य इनसे असंख्यात गुणे हैं जो सम्मूर्छन होते हैं। पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त के भेद से मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं। १७० आर्यखण्डों में तीनों प्रकार के मनुष्य होते हैं। भोग भूमि, कुभोग भूमि और म्लेच्छ खण्डों में लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य नहीं होते। जिन मनुष्यों की आहार शरीर आदि ६ पर्याप्तियाँ पूर्ण नहीं हुई हैं किन्तु होने वाली हैं वे निवृत्यपर्याप्तक हैं, जिनकी पर्याप्तियाँ पूर्ण हो चुकी है वे पर्याप्तक हैं। यह पर्याप्त अवस्था गर्भ में ही अंतर्मुहूर्त में ही हो जाती है। जिनकी पर्याप्तियां पूर्ण नहीं होती हैं और नियम से मर जाते हैं, ऐसे क्षुद्रभव को धारण करने वाले लब्ध्यपर्याप्तक हैं, इनके मनुष्य गति, मनुष्य आयु कर्म का उदय है, किन्तु ये अत्यन्त दयनीय समूर्छन होते हैं। स्त्रियों की कुक्षि, कक्ष आदि में जन्म लेते रहते हैं, भरते रहते हैं। सामान्य मनुष्य राशि का प्रमाण (M) = जगच्छ्रेणी (J) : सूच्यंगुल (S) का प्रथम व तृतीय वर्गमूल – १ = } : (S1/2xs118) -1 = J: s5/8 - 1 इनमें पर्याप्त मनुष्य पांचवे वर्ग के घनप्रमाण, अर्थात् M3/32 हैं। अपर्याप्त मनुष्य राशि = सामान्य मनुष्य राशि- (उपरोक्त पर्याप्त मनुष्य राशि+ उपरोक्त पर्याप्त मनुष्यिणी राशि) मनुष्यों में सभी छहों लेश्यायें पायी जाती हैं। मरकर सभी गतियों एवम् मोक्ष में जाते हैं। १.२२
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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