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सबसे अन्त में स्वयम्भूरमण द्वीप है (जिसके गोलाकार मध्य में स्वयंप्रभ पर्वत है), तत्पश्चात रवयंभूरमण समद्र है। ढाई द्वीप के आगे स्वयंप्रभ पर्वत तक जघन्य भोगभूमि है। तत्पश्चात् कर्मभूमि के दुःखमा काल जैसी व्यवस्था है, किन्तु वहां केवल तिर्यञ्च ही पैदा होते हैं। मध्य लोक चित्र ५.०७ में शाया है।
लवण समुद्र, कालोदधि समुद्र तथा स्वयभूरमण समुद्र में ही जलचर जीव हैं। अन्य समुद्रों में नहीं है।
लवण समुद्र में चार उत्कृष्ट, चार मध्यम तथा १००० जघन्य पाताल हैं, जैसा कि चित्र १.०५ में दर्शाया गया है। इस समुद्र में ४८ द्वीपों पर कुभोगभूमियां हैं। जो जीव तीव्र अभिमान से गर्वित होकर सम्यक्त्व और तप से युक्त साधुओं का किञ्चित भी अपमान करते हैं, जो दुराचारी मुनि एकाकी रहते हैं, कलह करते हैं, अहि- संज्ञा में आसक्त, लोभ कषाय से मोहित, जिन लिंग को धारण करते हुए भी घोर पाप करते हैं, पंच परमेष्ठी की भक्ति से विमुख रहते हैं, सम्यक्त्व से विमुख रहते हैं, कुपात्रों को दान देते हैं, वे इन कुत्सित-रूप से युक्त कुमानुष इन कुभोगभूमियों में उत्पन्न होते हैं। ये सब कुमानुष २००० धनुष ऊँचे होते हैं, मन्द कषायी, प्रियंगु सदृश श्यामल और १ पल्य प्रमाण आयु से युक्त होते हैं। मरण को प्राप्त होकर भवनत्रिक देवों में उत्पन्न होते हैं। इन द्वीपों में जिन मनुष्यों व तिर्यंचों ने सम्यग्दर्शन रूप रत्न ग्रहण कर लिया है, वे सौधर्म युगल में उत्पन्न होते हैं।
____ कालोदधि समुद्र में भी ४८ द्वीपों पर कुभोग भूमियां हैं, किन्तु लवण समुद्र की तरह पाताल नहीं हैं। __ मनुष्यों की आयु आदि का विवरण इस प्रकार है:
आयु
ऊँचाई सुषमा सुषमा काल (उत्कृष्ट भोगभूमि) ३ पल्य (आदि में) ३ कोस (आदि में) सुषमा काल (मध्यम भोगभूमि) २ पल्य ( .) २ कोस ( ..) सुषमाः दुःषमा काल (जघन्य भोगभूमि) १ पल्य ( ..) १ कोस ( ..) दुःषमा सुखमा काल (कर्मभूमि) १ पूर्व कोटि ( ..) ५०० धनुष ( ..) दुःखमा काल
१२० वर्ष ( ..) ७ हाथ ( ...) दुःखमा दुःखमा काल) उत्कृष्ट २० वर्ष ३ अथवा ३1 हाथ (.)
१५ अथवा १६ वर्ष (अंत में) १ हाथ (अन्त में)
१.२१