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वहाँ से ऑक्सीजन लेकर oxyhaemoglobin के रूप में शरीर के प्रत्येक कोषों (cells) में पहुंचते हैं। उन कोषों का दूषित पदार्थ oxyhaemoglobin के सम्पर्क में आकर कार्बन डाईऑक्साइड (Carbon dioxide) बनाती है, तथा यह रक्त के कण वापस शुद्धीकरण हेतु फेफड़ों में आते हैं। शरीर में यह कोष ७५ लाख करोड़ से भी अधिक होते हैं। शुद्ध लाल रक्त ले जाने वाली रक्त वाहिनी नलिकायें धमनियाँ artery (आर्टरी) कहलाती हैं और दूषित रक्त वाहिनी नसें veins (Vena cava) कहलाती हैं। सफेद रक्त कण बैक्टीरिया आदि से शरीर की रक्षा करते हैं। बैक्टीरिया आदि को घेरकर अथवा उनको नष्ट करने वाले पदार्थ बनाकर अथवा उनका प्रतिकार करके ये काम करते हैं। रक्त कणों की
औसतन जिन्दगी १२० दिन होती है। मृत कणों को यकृत (Liver), प्लीहा (spleen) अथवा हड्डी के गूदे (bone-marrow) में ले जाया जाता है, जहाँ ये नष्ट किये जाते हैं। श्वेत कण Antitoxins बनाकर Toxins को निष्प्रभावी बनाते हैं। इसके अतिरिक्त यह शरीर में प्रतिकार शक्ति (Immunity) प्रत्यारोपण करते हैं, जिससे शरीर में प्रवेश करने वाले सूक्ष्म जीवाणु नष्ट होते हैं।
प्रत्येक स्वस्थ मनुष्य के रुधिर में प्रति घन मिलीमीटर में ४५ से ५० लाख रक्त कण, ५००० से ६००० सफेद रक्त कण तथा २.५ लाख प्लेटलेट्स होते हैं। शरीर में ५ से ६.५ लीटर रक्त होता है।
उक्त सम्बन्ध में चित्र २.१६ व २.१७ का अवलोकन करिये।
रक्त में समूहनिन और समूहजन पदार्थों के आधार पर रचना होती है। अलग अलग लोगों में इनकी मात्रायें अलग-अलग होती है और इसके आधार पर रक्त के चार Blood groups किये गये हैं -0, A, B, AB. चित्र २.१६ में तीर के चिन्हों से यह दर्शाया गया है कि किन व्यक्तियों को ब्लड ग्रुप के आधार पर किन व्यक्तियों द्वारा रक्त प्रत्यारोपण (Blood transfusion) किया जा सकता है।
रक्त कण ले जाने वाली Artery मोटी, लचीली परतों की होती है क्योंकि उनके अन्दर से दबाव (Pressure) में रक्त बहता है, जबकि अशुद्ध रक्त लाने वाली Veins पतली होती है क्योंकि उनके अन्दर रक्त का दबाव कम होता है। जो बड़ी Veins होती है, उनमें रक्त को वापस जाने से रोकने के
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