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________________ वाल्व Valves) होते हैं, जैसा कि चित्र २.१८ में दर्शाया है। रक्त जब गुर्दो (kidneys) में पहुँचता है, तब छानने की प्रक्रिया में विषाक्त तथा अनुपयोगी पदार्थ मूत्र रूप में बाहर निकल जाता है। रक्त परिभ्रमण चक्र चित्र २.२० में दर्शाया गया है। फेंफड़ों में ऑक्सीजन प्राप्त होने से रक्त शुद्ध हो जाता है। यदि फेफड़े ठीक तौर पर काम न करें, तो रक्त में स्थित कार्बन व विजातीय द्रव्यों का पूर्णतः निकास नहीं होता, फलतः गुर्दे (किडनी) को अधिक कार्य करना पड़ता है, जिससे उसकी क्षमता कम हो जाती है। तब अवशिष्ट विजातीय द्रव्य त्वचा द्वारा बाहर निकलते हैं, जिसे चर्मरोग के रूप में पहिचाना जाता है। जब कोई कोशिका (Tissue) क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो उसमें से कुछ रसायन (Chemicals) निकलते हैं जो रक्त प्लेटलेट्स को आकर्षित करते हैं। वे आपस में मिलकर Fibrin Web (अघुलनशील प्रोटीन का जाल) बना देते हैं। इस जाल में रक्त कण बन्द हो जाते हैं, जिससे रक्त का थक्का (Clot) बनकर, सूख जाने पर खुरंट (पपड़ी) (Scab) बन जाता है। इससे बाहर बहने वाला रक्त बन्द हो जाता है। यह प्रक्रिया चित्र २.२१ में दर्शायी गयी है। रक्त के कार्य - i) वाहन क) फेफड़ों से oxyhaemoglobin के रूप में ऑक्सीजन को शरीर कोषिकाओं तक ले जाना और वहाँ से दूषित पदार्थों को फैफड़ों तक लाना। ख) पाचक अङ्गो से मुख्य पुष्टिकारक पदार्थों को कोषिकाओं तक पहुँचाना। ग) Metabolism के विभिन्न उत्पादनों जैसे यूरिया (Urea), यूरिक एसिड {Uric acid) इत्यादि को निष्कासन हेतु गुर्दे, फैफड़ों , त्वचा और आँतों तक पहुँचाना। घ) हार्मोन (harmones), enzyme, खनिज पदार्थों का वाहन। २.२२
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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