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________________ १२. तीन दिन (ख) पदस्थ रिष्ट मुखमण्डल कमल सदृश गोल और मनोहर हो जाए एवम् कपोलो में इन्द्रगोप के समान चिन्ह प्रकट हो जाए, सिर के बाल खींचने पर दर्द मालूम न हो, कान में समुद्रघोष सदृश आवाज आए, कानों के भीतर होने वाली ध्वनि न सुने, हथेलियों की चुल्लू न बनने पर अथवा एक चुल्लू बन जाने पर उसे अलग करने में देर लगे । कन्धा न दिखाई दे । प्रकृति हमें इष्टानिष्ट की सूचना दे देती है । जो व्यक्ति विज्ञ है, योग शक्ति से युक्त है तथा जिनकी आत्मा विशेष पवित्र है, वे ही इन प्रकृति के रहस्यमय संकेतों को समझने में समर्थ होते हैं। ये रिष्ट आकाशीय दिव्य पदार्थों में, भूमि पर और कत्ता, बिल्ली, नेवला, सर्प, कबूतर चींटी, कौआ एवम् गाय, औल आदि के संकतों द्वारा जाने जा सकते हैं। पूर्व भव के पुण्योदय से या इस भव के शुभ कार्यों से जिन व्यक्तियों में प्रमाण मनोवृत्ति वर्तमान है और जो उपपत्ति गुण का प्रयोग करना जानते हैं, वे व्यक्ति यदि जिनेन्द्र भगवान का पूजन कर अथवा स्थिर चित्त होकर ॐ ह्रीं णमो अरिहंताणं कमले कमले विमले विमले उदरदेवी इटि मिटि पुलिहिणी स्वाहा # इस मंत्र का २१ बार जाप करके रिष्ट दर्शन करें तो उन्हें कई वर्ष पूर्व अपनी मृत्यु का बोध हो सकता है। - जो व्यक्ति चन्द्रमा को नाना रूपों में तथा छिद्रों से परिपूर्ण देखता है, अर्ध चन्द्र को मण्डलाकार देखता है, जो सप्तऋषि एवम् ध्रुव आदि ताराओं को नहीं देखता तथा दिन में धूप नहीं देखता, ग्रहण के अभाव में भी चन्द्रमा को ग्रहण सदृश रूप में देखता है, सूर्य बिम्ब को छिद्रपूर्ण और अनेक रूपों में देखता है, वह व्यक्ति एक वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहता । १.२५६
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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