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________________ ! ८. ६. १०. ११. पन्द्रह दिन दस दिन आठ दिन सात दिन -चन्द्र के प्रकाश को स्पष्ट न एवम् सूर्य-च देख सके, जिल्हा इन्द्रिय और लिंग इन्द्रिय ( उपस्थ) काले पड़ जायें या विकृत हो जायें रसना इन्द्रिय को खट्टे-मीठे आदि का ज्ञान न हो, नख ओष्ट व दाँत काले हो जायें और ललाट की बड़ी-बड़ी रेखाएँ मिट जायें। (एक साथ सब चिन्ह प्रकट नहीं होते, कोई एकाध चिन्ह प्रकट होता है ( ) हाथ न दिखाई दें। शरीर कान्तिहीन हो जाए, बाहर निकलने वाला श्वास तेज हो जाए, तेज सुगन्ध या दुर्गन्ध का अनुभव न हो, स्नान करने के बाद पहले वक्षस्थल सूखता हो और सर्व शरीर गीला रहे तथा जो दूसरों का रूप न देख सके । नख एवम् दाँत आदि विकृत हो जाएं। बाहु न दिखाई दे | आँखें स्थिर हो जाएं शरीर कान्तिहीन और काष्टवत हो जाए, ललाट में पसीना आवे, मुख एकाएक खुल जाए, भौंहें टेढ़ी हो जाएं, आँख की पुतली भीतर घुस जाए, मुख सफेद और विकृत हो जाए, दाँत टुकड़े-टुकड़े होकर गिरने लगें तथा दुर्गन्ध आने लगे, मस्तक में विचित्र प्रकार की सनसनाहट पैदा हो जाए, शब्दों का उच्चारण यथार्थ न हो, हाथ और पैरों की उँगलियों की जोड़ें न कड़के, शरीर अकस्मात ही निर्बल या काला पड़ जाए १. २५५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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