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________________ नोट- लेश्या के आधीन ही गति है। ऐसे तो भावानुसार प्रत्येक समय कर्म बंधते रहते हैं, किन्तु आयु कर्म मात्र निम्न कालों में ही बंधता है। माना कि कर्म भूमि के मनुष्य / तिर्यंच की आयु ६५६१ क है अर्थात क = 3 03 ६५६१ तो, आगामी गति बंधने की सम्भावना निम्न प्रकार है: अपकर्ष अपकर्ष काल (आयु बंधने की योग्यता) x६५६१ क - २१८७ क आयु शेष रहने पर प्रथम समय से लेकर अन्तर्मुहुर्त काल तक द्वितीय - x २१८७ क - ७२६ क प्रथम तृतीय 1 x ७२६ क = २४३ क चतुर्थ هم اس ام اند ام الله x२४३ क = ८१ क पंचम x89 क = २७ क षष्ठ + x २७ क = ६ क اه اه اه | سه सप्तम x ६ क =३ क अष्ट्रम क = क यह आवश्यक नहीं कि इन अपकर्षों में आयु बंध हो ही जाए। यदि आठवें अपकर्ष पर भी आयु नहीं बंधती, तो मरणकाल से आवली के असंख्यातवें काल के अवशेष रहने पर पहली अंतर्मुहूर्त काल में आगामी आयु निश्चित तौर पर बंधती हैं इसलिए मनुष्य को रत्नत्रय का सदैव पालन करते रहना चाहिए, ताकि आगामी गति सुधर सके। (८) उपसंहार – सल्लेखना अथवा समाधिमरण का सर्वाधिक महत्व १.२५१
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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