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एवमाराधयन आलोचना वंदना प्रतिक्रमणानि।
प्राप्नोति फलं च तेषां निर्दिष्टमाजित ब्रह्मणा ।।५४ ।। अर्थ- इस प्रकार आलोचना, वन्दना और प्रतिक्रमण की आराधना करने से भगवान जिनेन्द्र देव का कहा हुआ मोक्षफल प्राप्त होता है। अति संक्षेप में यह आलोचना का स्वरूप (देशव्रती) "जिद ब्रह्मचारी ने कहा है1:४।
जो छोड़ता जायेगा, वह ऊँचा उठता जायेगा। जो जोड़ता जायेगा, वह डूबला जायेगा।
- आचार्य श्री १०८ भरतसागर जी |
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