SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ केवल दर्शन ज्ञाने समयेनैकेन द्वावुपयोगी। अन्यो न मम शरणं शरणं स एकः परमात्मा।।४० ।। अर्थ- उस परमात्मा के केवल ज्ञान और केवलदर्शन – ये दोनों उपयोग एक ही समय में एक साथ रहते हैं। वह परमात्मा ही मुझे शरण है, अन्य कोई शरण नहीं है ।।४।। स्वकरूप सहज सिद्धो विभावगुणमुक्त कर्म व्यापारः । अन्यो न मम शरणं शरणं स एकः परमात्मा ।।४१।। अर्थ- जो अपने स्वरूप से सहज सिद्ध है और रागद्वेषादिक वैभाविक गुणों से रहित होने के कारण समस्त कर्मों के व्यापार से रहित है, ऐसा वह परमात्मा ही मुझे शरण है, अन्य कोई भी शरण नहीं है।।४१।। शून्यो नैवाशून्यो नोकर्मकर्मवर्जितो ज्ञानम्। अन्यो न मम शरणं शरणं स एक: परमात्मा ।।४२।। अर्थ- वह परमात्मा रूप, रस, गंध और स्पर्श से रहित होने के कारण शून्य है तथा ज्ञानमय आत्म-स्वरूप होने के कारण शून्य रूप नहीं भी है। उस परमात्मा का ज्ञान नोकर्मों से रहित है और ज्ञानावरणादि आठ कर्मों से रहित है, ऐसा वह परमात्मा ही मुझे शरण है, अन्य कोई शरण नहीं है ।।४२।। ज्ञान तो यो न भिन्नः विकल्पभिन्न: स्वभाव सुखमयः। अन्यो न मम शरणं शरणं स एक: परमात्मा ।।४३।। अर्थ- जो परमात्मा अपने केवलज्ञान से कभी भिन्न नहीं होता, किन्तु सब तरह के विकल्पों से सदा भिन्न रहता है और स्वाभाविक सुख स्वरूप है, ऐसा परमात्मा ही मुझे शरण है, अन्य कोई शरण नहीं है। ४३।। अच्छिन्नोऽवच्छिन्नः प्रमेयरूपत्वं अगुरुलघुत्वं चैव। अन्यो न मम शरणं शरणं स एकः परमात्मा ।।४४।। अर्थ-- जो कभी किसी प्रकार छिन्न-भिन्न नहीं होता है, सदैव अखण्ड स्वरूप है, अवछिन्न है, ज्ञान के द्वारा समस्त पदार्थों का ज्ञाता है और अगुरुलघु गुण से सुशोभित है, ऐसा परमात्मा ही मुझे शरण है, अन्य कोई शरण नहीं है।।४४ ।। १.२४१
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy