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________________ एक: स्वभावसिद्धः स आत्मा विकल्प परिमुक्त। अन्यो न मम शरणं शरणं स एकः परमात्मा।।३५।। अर्थ- जो आत्मा एक है, स्वभाव से सिद्ध है और सर्व विकल्पों से रहित है, मैं ऐसे ही एक परमात्मा की शरण लेता हूँ। ऐसे परमात्मा के सिवाय अन्य कोई भी शरण नहीं है।।३५।। अरसः अरूप: अगंधः अव्याबाधः अनन्तज्ञानमयः ।। अन्यो न मम शरणं शरणं स एकः परमात्मा ||३६।। अर्थ- जो परमात्मा रस रहित है, रूप रहित है, गंध रहित है, सर्व प्रकार की बाधा से रहित है और अनन्त ज्ञान स्वरूप है, ऐसा एक परमात्मा ही मुझे शरण है, अन्य कोई शरण नहीं है।।३६।। ज्ञेय प्रमाणं ज्ञानं समयेन एकेन भवति स्व-स्वभावे। अन्यो न मम शरणं शरणं से एकः परमात्मा ।।३७ ।। अर्थ- ज्ञान ज्ञेय प्रमाण है। यद्यपि परमात्मा का वह उत्कृष्ट अनन्त ज्ञान अपने स्वभाव में ही स्थिर रहता है, तथापि वह प्रत्येक समय में समस्त ज्ञेय पदार्थों को जानता है, ऐसा वह परमात्मा ही मुझे शरण है, अन्य कोई शरण नहीं है ।।३७ ।। एकानेक विकल्प प्रसाधने स्वकस्वभाव शुद्धगतिः। अन्यो न मम शरणं शरणं स एकः परमात्मा ||३८।। अर्थ- उस परमात्मा को चाहे एक प्रकार से सिद्ध किया जाये और चाहे अनेक प्रकार से सिद्ध किया जाये, वह सदा अपने ही स्वभाव में शुद्ध बुद्ध स्वरूप से स्थिर रहता है। ऐसा वह परमात्मा ही मुझे शरण है, अन्य कोई शरण नहीं है।।३८ ।। देह प्रमाणो नित्यो लोक प्रमाणोऽपि धर्मतो भवति। अन्यो न मम शरणं शरणं स एकः परमात्मा ||६|| अर्थ- ये आत्मा नित्य है, शरीर के प्रमाण के बराबर है और केवली समुद्घात की अपेक्षा सर्व लोक व्याप्त करने से लोक प्रमाण (असंख्यात प्रदेशी) है. ऐसा यह आत्मा ही मुझे शरण है, अन्य कोई शरण नहीं है।।३६ ।। १.२४०
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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