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लोके पितृसमाना ऋद्धिप्रपन्ना महगणपतयः ।
ये ये विराधिताः खलु मिथ्या मे दुष्कृतं भवतु || ३० | |
अर्थ- हे भगवन, अनेक ऋद्धियों के धारण करने वाले गणधर देव इस लोक में पिता के समान हैं, क्योंकि वे सर्व ऋषियों के गुरु हैं। मुझसे उनकी जो-जो विराधना हुई हो, वे मेरे सर्व पाप मिथ्या हो । ३० ।।
निर्ग्रथा आर्थिकाः श्रातताः श्राविकाश्चः चतुर्विधः संघः । ये ये विराधिताः खलु मिथ्या मे दुष्कृतं भवतु । । ३१ । १
अर्थ- हे प्रभो, परम दिगम्बर निर्ग्रन्थ मुनि, आर्यिका श्रावक श्राविका - इन चार प्रकार के संघों में से जिस-जिसकी विराधना ( मिथ्याभाव एवम् अविनय ) की हो, मेरे वे सर्व पाप मिथ्या हों | | ३१ । ।
देवा असुरा मनुष्या नारकाः तिर्यग्योनिगत जीवाः ।
ये ये विराधिताः खलु मिथ्या मे दुष्कृतं भवतु । । ३२ ।।
अर्थ- हे प्रभो, मैंने वैमानिक भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों की, मनुष्य, नारकी और तिर्यञ्च योनिगत जीवों की जो-जो विराधना की हो, वे मेरे तत्सम्बन्धी सर्व पाप मिथ्या हों । । ३२ ।।
क्रोधो मानो माया लोभ एते राग द्वेषाः ।
अज्ञानेन येऽपि कृता मिथ्या मे दुष्कृतं भवतु ||३३||
अर्थ- हे प्रभो, मैंने अपने अज्ञान से क्रोध, मान, माया और लोभ रूप जो-जो राग-द्वेष आदि रूप दुर्भाव किये हों, वे मेरे सर्व पाप मिथ्या हों । । ३३ । ।
परवस्त्रं परमहिला प्रमादयोगेनार्जितं पापम् ।
अन्येपि अकरणीया मिथ्या मे दुष्कृत भवतु । । ३४ ।।
अर्थ- हे भगवन, परवस्त्र और पर - स्त्री ( पर-पुरुष ) आदि के सम्बन्ध में प्रमादयोग पूर्वक जो पाप मैंने किये हों और जो-जो न करने योग्य कार्य किये हों, तत्सम्बन्धी मेरे सर्व पाप मिथ्या हों । । ३४ ।।
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