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________________ कन्द फल मूल बीजानि सचित्त रजनी मोजनाहाराः । अज्ञानेन येऽपि कृता मिथ्या मे दुष्कृतं भवतु ||२०|| अर्थ- हे भगवन, यदि मैंने अपने अज्ञान से कन्द फल मूल बीज खाये हों, अन्य सचित्त पदार्थों का भक्षण किया हो, रात्रि में भोजन बनाया हो तथा खाया हो, तो तत्सम्बन्धी वे मेरे सर्व पाप मिथ्या हों । | २० || नो पूजा जिन चरणे न पात्रदानं न चेर्यागमनम् । न कृता न भाविता मया मिथ्या मे दुष्कृतं भवतु ||२१|| अर्थ- मैंने श्री जिनेन्द्र देव के पवित्र चरण कमलों की पूजा नहीं की हो, पात्र को दान नहीं दिया हो, ईर्ष्या समिति पूर्वक गमन न किया हो तथा न इन पवित्र कार्यों के करने की भावना ही की हो, तो तत्संबंधी मेरे सर्व पाप मिथ्या हों | | २१ | | बारम्भ परिग्रह सावधानि बहूनि प्रमाद दोषेण । जीवा विराधिताः खलु मिथ्या मे दुष्कृतं भवतु ||२२|| अर्थ- हे भगवन, मैंने अपने प्रमाद से ब्रह्मचर्य व्रत में दोष लगाये हों, बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह के संचय में दोष लगाये हों और इन कार्यों में जीवों की जो विराधना की हो, तो वे मेरे सब पाप मिथ्या हों ||२२|| सप्ततिशत क्षेत्र भवाः अतीतानगत वर्तमान जिनाः । ये ये विराधिता खलु मिथ्या मे दुष्कृतं भवतु ।। २३ ।। अर्थ - हे भगवन, १७० कर्मभूमियों में होने वाले भूत, भविष्यत और वर्तमान काल में होने वाले तीर्थकर परम देवाधिदेवों की जो विराधना ( अनादर एवं अश्रद्धा आदि) की हो, तो तत्सम्बन्धी मेरे समस्त पाप मिथ्या हों ।। २३ ।। अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायाः साधवः पंच परमेष्ठिनः । ये ये विराधिताः खलु मिथ्या मे दुष्कृतं भवतु ।। २४ ।। अर्थ - अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु परमेष्ठियों की मैने जो-जो विराधना ( अश्रद्धा. अवज्ञा, अनादर एवं उनकी आज्ञा भंग) की हो, वे मेरे सभी पाप मिथ्या हों । । २४ । । १.२३७
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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