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________________ वह धी जो छाछ से निकले हुए मक्खन की अवधि के अन्दर (निकलने से ४८ मिनट के अन्दर) तपाकर निकाला गया हो, वहीं वस्तु खाने लायक है। निकलने से ४८ मिनट तक मक्खन में कोई खराबी नहीं होती, अवधि के बाद उसमें कीड़े पैदा होने लगते हैं। (२०) मदिरा - इसमें अनन्त जीव होते हैं। यह मनुष्य के विवेक को हर लेती है। कहते हैं कि यदि एक एंट में इतने जीव होते है कि यदि ने भ्रमर शरीर को धारण करे, तो तीन लोक में समा जायेंगे। यह घोर अभक्ष्य है। (२१) तुच्छ फल - जो फल पूर्ण रूप से विकास नहीं कर पाये हैं, ऐसी छोटी अवस्था वाले फल जैसे छोटी ककड़ी, कैरी, तोरई, भिंडी, गिलकी आदि। तुच्छ अवस्था में अनन्त सूक्ष्म निगोदिया जीव रहते हैं। बड़े हो जाने पर सप्रतिष्ठित प्रत्येक न होता हुआ वह अप्रतिष्ठित प्रत्येक हो जाता है, तब उस अर्थात अप्रतिष्ठित प्रत्येक अवस्था में भक्षणीय माना जा सकता है। (२२) चलित रस – जिस पदार्थ की जो मर्यादा है, उसके बीत जाने पर वह चलित रस माना जाता है, इसका स्वाद बिगड़ जाता है। न कश्चित् कस्य जानाति कि कस्य श्वो भविष्यति। अतः श्वः करणीयानि कुर्यादथैव बुद्धिमान् ।। । अर्थात - नीतिकार कहते हैं कि जिस कार्य को तुम कल करना चाहते हो उसे आज ही कर लो, । : क्योंकि भविष्य का कोई भरोसा नहीं, न जाने इस श्वास का आवन होय या न होय। - - १.२३२
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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