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परिशिष्ट १.०८ (क)
अभक्ष्य पदार्थ (१) ओला,पाला- ओला में अनन्त जलकायिक जीव होते हैं। पाला में भी
अत्याधिक जलकायिक जीव रहते हैं। घोरबड़ा - उन पदार्थों को कहते हैं, जो एक-दो रोज पहले से घोलकर रक्खे हुए (अथवा रग्दागे गये) मैदा, बेसन. दही आदि से बनाये जाते हैं, जैसे दही बड़ा, जलेबी आदि। इसमें त्रसकाय के जीव होते हैं एवम् ये उनकी हिंसा से बनते हैं। द्विदल - जिन पदार्थों के दो समान भाग हो जाते हैं, ऐसे पदार्थों को दूध, दही या छाछ से निकालकर खाना द्विदल सेवन करना कहलाता है। ऐसे पदार्थो में अनाजों में मूंग, चना, मटर, अरहर आदि तथा काष्ट (जिसमें तेल नहीं निकलता, जैसे मैथीदाना, लालमिर्च के बीज तथा भिंडी, तोरई, ककड़ी, तरबूज, कद्दू, ग्वारफली आदि के बीज)। इन द्विदलों को दूध, दही या छाछ से मिलाकर खाने पर, मुँह की लार के मिल जाने के फलस्वरूप त्रस जीवों की एक बड़ी भारी राशि पैदा हो जाती है तथा खानेवाले को त्रस जीवों की राशि
को खा जाने का महान पाप का बंध होता है। नोट - शरीर शास्त्र से सम्बन्धित रसायनसार प्रदीप में लिखा है -
शीतोष्णं गोरसे युक्तमन्न सार्थद्विक फलम्।
त्स्मात् भक्ष्यमाण एक रोगोत्पत्तिः प्रजायते ।। अथात्- जो पुरूष शीत अथवा उष्ण गोरस में मिश्रित द्विदल का सेवन (भक्षण) करता है उसके रोगों की उत्पत्ति हो जाती है। बहुबीज - जिन फलों के बीजों में खड़ी धारी हो किन्तु आड़ी धारी न हो, वे फल बहुबीजों में माने गये हैं। जैसे पोस्ता (खसखस) के दाने । बैंगन - इनमें चलती फिरती रैंगती द्विन्द्रिय जीव जैसे लटादि देखने में आते हैं।
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