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________________ भवनवासी देवों में आयु बांधने के कारण ज्ञान और चारित्र में दृढ़ शङ्का सहित, संक्लेश परिणाम वाले तथा मिथ्यात्य भाव से संयुक्त, दोषपूर्ण चारित्र वाले, उन्मार्गगामी, निदान भावों से युक्त, पापों की प्रमुखता से संयुक्त, कामिनी के विरह से जर्जरित, कलहप्रिय, पापिष्ट, अविनयी, सत्य वचन से रहित जीव भवनवासी देवों में जन्म लेते हैं। तीर्थकर जिन प्रतिमा एवं आगम--ग्रन्थादिक के विषय में प्रतिकूल, दुर्विनयी तथा प्रलाप करने वाले (जीप) किल्विषिक देवों में उत्पन्न होते हैं। जो कषायों में आसक्त हैं, दुश्चारित्र (क्रूराचारी) हैं तथा वैर भाव में रुचि रखते हैं वे असुरों में उत्पन्न होते हैं। इसके अतिरिक्त जो जीव तपश्चरण से पुन्य संचय करते हुए देवायु बांध लेते हैं, किन्तु बाद में सम्यक्त्यादि से च्युत हो जाते हैं, वे जीव भी भवनवासी देवों में जन्म लेते हैं। किन्तु विशुद्ध सम्यग्दृष्टि जीव कदापि इनमें जन्म नहीं लेते। इन सब देवों में पीत लेश्या का जघन्य अंश रहता है। सम्यक्त्व का ग्रहण ये जीव जन्म लेकर पश्चाताप करके, सम्यक्त्व को ग्रहण कर सकते हैं। कोई जिन महिमा (पंचकल्याणाकादि) के दर्शन से, कोई देवों की ऋद्धि के देखने से, कोई जातिस्मरण और कितने ही देव उत्तम धर्मोपदेश की प्राप्ति से दुरन्त संसार को नष्ट करने वाले सम्यग्दर्शन को ग्रहण करते हैं। भवनवासी देव अपनी आयु पूर्ण करके कहां जन्म लेते हैं: मिथ्यादृष्टि जीव कर्मभूमि में गर्भज और पर्याप्त मनुष्य, तिर्यञ्च में उत्पन्न होते हैं सम्यग्दृष्टि जीव कर्मभूमि में गर्भज और पर्याप्त मनुष्य में उत्पन्न होते हैं, किन्तु वे शलाका पुरुष नहीं होते। उन्हीं में किसी को मोक्ष की प्राप्ति भी हो जाती है। भवनवासी देवों की संख्या = जगच्छ्रेणी x घनांगुल का प्रथम वर्गमूल जिन भवनों की संख्या = ७,७२,००,००० १.१२
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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