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(४) मध्य लोक
योजन
प्रथम रत्नप्रभा पृथ्वी के खरभाग में सबसे मध्य में १ लाख सजू प्रमाण गोल जम्बूद्वीप अवस्थित है, जिसका वर्णन चित्र १०३ व १.०४ में दिया है। जम्बूद्वीप को चूड़ी के समान वेष्ठित किये हुए लवण समुद्र (चित्र १.०५) स्थित है जो जम्बूद्वीप से दुगुना, अर्थात २ लाख योजन चौड़ा है और १००० योजन गहरा है। इसको घेरे हुए धातकीखण्ड द्वीप है जो लवण समुद्र से दूना अर्थात ४ लाख योजन चौड़ा है। इसको घेरे हुए कालोदधि समुद्र है जो ८ लाख योजन चौड़ा है और १००० योजन गहरा है । इसके चारों ओर चूड़ी के समान अवस्थित पुष्कर द्वीप है, जो १६ लाख योजन चौड़ा है। इसके गोलाकार मध्य में मानुषोत्तर पर्वत है जो १७२१ योजना ऊँचा है। मनुष्य व विद्याधर इस पर्वत को उलंघ नहीं सकते हैं, अर्थात आधे पुष्कर द्वीप के आगे नहीं जा सकते हैं। इस प्रकार यह ढाई द्वीप लवण समुद्र तथा कालोदधि समुद्र सहित मानुष क्षेत्र है तथा ढाई द्वीप के नाम से प्रसिद्ध है, जो चित्र १.०६ में दिखाया है। धातकीखण्ड द्वीप व पुष्करार्द्ध द्वीप की रचना जम्बूद्वीप सदृश ही है, केवल लम्बाई आदि में अन्तर है । धातकीखण्ड द्वीप व पुष्करार्द्ध प्रत्येक में २ भरत क्षेत्र २ ऐरावत क्षेत्र, २ हैमवत क्षेत्र, २ हैरण्यवत क्षेत्र २ हरि क्षेत्र २ रम्यक क्षेत्र २ देवकुरु, २ उत्तर कुरु व २ विदेह क्षेत्र हैं। कल्पकाल ( अर्थात अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी काल, जो दस-दस कोड़ा कोड़ी अद्धा सागर की है ) भरत क्षेत्रों व ऐरावत क्षेत्रों में रहता है। अवसर्पिणी के प्रथम सुषमा सुषमा काल के ४ कोड़ा कोड़ी सागर, द्वितीय सुषमा काल के ३ कोड़ा कोड़ी सागर, तृतीय सुषमा दुःषमा काल के २ कोड़ा कोड़ी सागर, चतुर्थ दुःषमा सुषमा काल के ४२००० वर्ष कम १ कोड़ा कोड़ी सागर, पञ्चम दुःषमा काल के २१,००० वर्ष व षष्ठम दुःषमा दुःषमा काल के २१,००० वर्ष होते हैं। इनमें क्रमशः उत्तम भोगभूमि, मध्यम भोगभूमि, जघन्य भोग भूमि, कर्म भूमि का काल अर्थात मोक्ष जाने की योग्यता, दुःखमयी एवं अति दुःखमयी काल होता है ।