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________________ निर्धारित करता है और सीमा के भीतर ही भोग-उपभोग करता है, अधिक नहीं। १. इस प्रकार इन पाँच अणुव्रतों के माध्यम से अपनी लालसा, कामना और इच्छाओं की- जिनकी अभी तक कोई सीमा नहीं थी- अब सीमा बनाता है। पंचाणुव्रतों के अतिरिक्त तीन गुणव्रतां और चार शिक्षाव्रतों का भी पालन करता है। गुणव्रत दिग्वतः व्यापार व्यवसाय के लिए मैं यहाँ-यहाँ तक आऊँगा -जाऊँगा, इस प्रकार क्षेत्र की सीमा बनाता है और उस सीमा के बाहर के क्षेत्र से कोई प्रयोजन नहीं रखता। देशव्रतः दिग्वत द्वारा निर्धारित किए गए क्षेत्र के भीतर भी सप्ताह दो सप्ताह के लिए अथवा प्रतिदिन एक अस्थायी सीमा बनाता है। इन दोनों व्रतों के माध्यम से निर्धारित क्षेत्र के बाहर जो जीव अजीव पदार्थ हैं, उन सम्बन्धी विकल्पों से बचा जाता है। अनर्थदण्ड व्रतः बिना प्रयोजन के न तो शरीर की कोई क्रिया करता है, न फालतू बकवास करता है, न फालतू के विचार-विकल्प करता है। दूसरों को जीव हिंसादि के साधनादिक भी नहीं देता। इस प्रकार सब निरर्थक बातों से बचता है। उक्त तीन गुणव्रतों के साथ ही साथ चार शिक्षाव्रतों का भी पालन करता है। ये शिक्षाव्रत मुनि धर्म को निभाने के प्रशिक्षण (Training) के तौर पर हैं: शिक्षाव्रत सामायिक व्रतः अपना समय आत्म-चिंतवन में लगाने के लिए दिन में कम से कम दो बार, सुबह और शाम को आत्मध्यान करता है। प्रोषधोपवास व्रतः अष्टमी, चतुर्दशी को उपवास करता है और उस दिन अपना सारा समय स्वाध्याय और आत्म..चितवन में लगाता है, जिससे वैराग्य भाव की पुष्टि होती है। ३. १.२२६
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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