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________________ (ख) भोगों की तीव्र लालसा नहीं रखता। (ग) भोगों के अप्राकृतिक उपाय नहीं करता। दुष्चरित्र स्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं रखता। (ड.) तलाक नहीं करता। स्त्रियों को रागभाव से नहीं देखता; गान, नृत्य इत्यादि नहीं देखता। (छ) स्त्रियों के मनोहर अंगों को नहीं देखता। इसके लिए सिनेमा, टेलीविजन आदि पर रागवर्द्धक दृश्यों को नहीं देखता। (ज) पहले भोगे गए भोगों को याद नहीं करता । कामोद्दीपक, गरिष्ठ पदार्थों का सेवन नहीं करता। (अ) अपने शरीर का बनाव-श्रृंगार नहीं करता। (ट) अपने पुत्र-पुत्री के अतिरिक्त अन्य का विवाह कराने के लिए बीच में नहीं पड़ता। परिप्रह-परिमाणाणुव्रतः तीव्र लोभ को मिटाने के लिए इस अणुव्रत के द्वारा परिग्रह की सीमा निर्धारित करता है। इसमें ये बातें गर्भित हैं:(क) गेहूँ, चावल आदि अन्नादिक पदार्थ आवश्यकता के अनुसार ही रखता है, ज्यादा इकट्ठी नहीं करता। (ख) उपहार आदि नहीं लेता, दहेज नहीं लेता। शादी-विवाह की दलाली का काम नहीं करता। यदि वह डाक्टर या वैद्य है, तो किसी बीमार के इलाज को नहीं बढ़ाता। (ड.) इसी प्रकार यदि वह वकील है तो अपने मुवक्किल को झूठी सलाह नहीं देता, उसके केस को लम्बा नहीं करता। इस प्रकार वह जिस व्यवसाय में भी है, उसमें या दैनिक व्यवहार में तीव्र लोभ के वशीभूत होकर कोई प्रवृत्ति नहीं करता। (छ) धन, मकान, वस्त्र-आभूषण, वाहन-गाड़ी, नौकर..चाकर आदि उपभोग्य पदार्थों और भोजन, पेय, फल वनस्पति आदि भोग्य पदार्थों की सीमा १.२२५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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