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भोगोपभोग - परिमाण व्रतः प्रतिदिन कुछ न कुछ भोग्य और उपभोग्य पदार्थों का त्याग करता है। अपने रोजाना के कार्यों का भी हर रोज परिमाण करता है।
इस प्रकार अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रत मिलाकर कुल बारह ( ५+३+४=१२) व्रत हैं, जिनका प्रारम्भ दूसरी प्रतिमा से होता है। जैसे-जैसे अन्तरंग में वैराग्य भाव की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है, उसी के अनुरूप आगे आगे की प्रतिमाओं के अनुरूप आचरण होता जाता है। अब तीसरी प्रतिमा से शुरू करके शेष प्रतिमाओं का क्या स्वरूप है, यह जानने का प्रयत्न करते हैं ।
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अतिथिसंविभाग व्रत: निरंतर यह भावना करता हैं कि कोई धार्मिक व्यक्ति (उत्तम पात्र -- गुनि, मध्यम पात्र - आर्यिका ऐलक, छुल्लक, क्षुल्लिका, जघन्य पात्र - अन्य श्रावकगण ) आये तो उसे भोजन कराने के पश्चात् ही स्वयं भोजन ग्रहण करूँ। इसके अतिरिक्त, करुणाबुद्धि के वश दीन-दुखियों की जरूरतों को पूरी करने की चेष्टा करता है |
सामायिक प्रतिमाः यहां पराधीनता और कम होती है तथा आत्म-चिंतवन की रुचि बढ़ती है। अतः अब प्रतिदिन तीन बार- सवेरे, दोपहर और सन्ध्या के समय आत्मध्यान करता है और ध्यान का समय भी कम से कम एक मुहूर्त या ४८ मिनट होता है। प्रोषधोपवास प्रतिमाः अब अष्टमी, चतुर्दशी को नियम से उपवास करता है । उस दिन घर गृहस्थी का व्यापार-व्यवसायादि का समस्त कार्य त्याग कर निरंतर आत्म-चिंतवन और स्वाध्याय करता है। यह उपवास सोलह बारह और आठ प्रहर की अवधि के क्रम से तीन प्रकार का होता है ।
सचित्तत्याग प्रतिमा: जीवों की रक्षा के लिए गर्म अथवा प्रासुक जल लेता है। भोजन - पान की प्रत्येक वस्तु प्रासुक करके ही काम में लेता है जिससे कि उस पदार्थ में कालान्तर में भी जीवों की उत्पत्ति न हो।
रात्रि भोजन त्याग प्रतिमाः रात्रि भोजन का त्याग तो पहले ही कर दिया था, अब मन-वचन-काय तीनों से इस व्रत को निरतिचार पालता
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