________________
बनता है। अध्यात्म ही जीवन का परम सत्य है जीवन की तर्ज है एवम् देवत्व / अमृतत्व की ओर ले जाता है ।
आज मनुष्य भौतिक दृष्टि से अधिक सम्पन्न तो हो गया है, किन्तु वह मानसिक रूप से दुखी है। मुसीबतों में फंसा है, क्यों ? कठिनाइयों में जकड़ा है, क्यों ? क्योंकि मनुष्य के जीवन से अध्यात्म और धर्म चुक गया है। जो अध्यात्म और आत्मा के पथ पर चलते हैं, वे ही मन के मालिक बनते हैं, मन को जी पाते हैं एवम् मृत्यु को जीत लेते हैं। मन को परमात्मा के चरणों में मिटकार जिया जा सकता है। मन को मिटाने का अर्थ अपने अहंकार, ईगो ( ego ) क्रोधादि दुर्गुणों को मिटा देना है ।
मन एक बहुत बड़े ऊर्जा का स्रोत है, किन्तु उस पर नियंत्रण न होने के कारण उस ऊर्जा का विभिन्न विचारों के रूप में बहिर्गमन होता रहता है एवम् दुरुपयोग भी होता रहता है। मन विद्युत के मेन (main) स्विच की तरह है, इसे बंद कर दें तो इन्द्रिय- लम्पटता रूपी उपकरण स्वतः ही बन्द हो जाते हैं। संसार को जीतना आसान है, लेकिन जो अपने आपको जीत ले, अपने विकारों को जीत ले, वह विरला ही वीर होता है, महावीर होता है। क्योंकि मन बड़ा प्रबल है, बड़ा राजनीतिज्ञ है, बड़ा अवसरवादी है और मायाचारी का बड़ा अजायबघर है ।
मन की तृप्ति
मन भोगों से कभी तृप्त नहीं होता। उसे तृप्त करना है तो उस पर त्याग का अंकुश रखो। उसको विवेक की लकड़ी से पीटो। मन पीटने से सुधरता है। मन की पूजा नहीं, पिटाई करो - बस मन तुम्हारा दास बनकर रह जायेगा । अभी तो तुम मन के गुलाम हो । मन को मनाओगे तो सिर पर चढ़ेगा, उसे मारोगे तो तुम्हारा चेला बन
जायेगा ।
मन आकांक्षाओं में जीता है और आकांक्षाएँ अगणित होती हैं यदि मन आवश्यकता में जीना प्रारम्भ कर दे, तो आज ही तृप्त हो सकता है। मन को जीतना है, जीना है तो तुम्हें आवश्यक्ता में जीना होगा, क्योंकि आवश्यक्ता की पूर्ति सीमित होने के कारण सम्भव है ।
१. २०७