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देव पूजा, गुरुपारित, स्वाध्याय, संयम, तप और दान ये धर्म क्रियाएं हैं। असि, मसि, कृषि, शिल्प, वाणिज्य और विद्या इन छ: क्रियाओं से होने वाले पाप का उक्त छ: धर्म क्रियाओं से क्षय होता है, पुण्य प्राप्त होता है। पंच पाप का त्याग करने से पंचेन्द्रिय सुख मिलता है, लेकिन मोक्ष नहीं मिलता। सम्पत्ति, संतति, वैभव, राज्य, इन्द्रपद पुण्य से ही मिलता है, किन्तु मोक्ष आत्म-चिन्तन से ही प्राप्त होता है। नय, शास्त्र, अनुभव इन तीनों को मिलाकर देखिये। मोक्ष किससे प्राप्त होता है ? मोक्ष आत्म-चिन्तन से ही प्राप्त होता है, यह भगवान की वाणी है। यही सत्य वाणी है। मोक्ष का कारण एक आत्म-चिंतन है। इसके बिना सद्गति नहीं होती।
सारांश 'धर्मस्य मूलं दया' प्राणी का रक्षक दया है। जिन धर्म का मूल क्या है ? 'सत्य और अहिंसा'। मुख से सब सत्य अहिंसा बोलते हैं। मुख से भोजन भोजन कहने से क्या पेट भरता है ? भोजन किये बिना पेट नहीं भरता है, क्रिया करनी चाहिए। सत्य अहिंसा पालो। सत्य से सम्यक्त्व है। अहिंसा से दया है। किसी को कष्ट नहीं दो। यह व्यवहार की बात है। सम्यक्त्व धारण करो, संयम धारण करो, इसके बिना कल्याण नहीं होता।
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