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अनंत कर्म की निर्जरा के लिये आत्म चिन्तन ही उपाय है। वह आत्म-चिंतन चौबीस घंटे में से मह घड़ी नष्ट, चार घड़ी मध्यम, दो घड़ी जघन्य, कम से कम दस..पन्द्रह मिनट या हमारे कहने से पांच मिनट तो आत्म-चिन्तन करो। आत्म-चिन्तन के सिवाय सम्यक्त्व नहीं होता, संसार का बंधन नहीं टूटता, जन्म, बुढ़ापा, मृत्यु नहीं छूटती। सम्यक्त्व के बगैर दर्शन मोहनीय कर्म का क्षय नहीं होता। सम्यक्त्व होकर छयासठ सागर तक यह जीव संसार में रहेगा। चारित्र-मोहनीय कर्म का क्षय करने के लिए संयम धारण करना चाहिये। संयम के बिना चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय नहीं होता। इसलिये जैसे भी हो हर एक जीव को संयम धारण करना चाहिये। डरना नहीं है। वस्त्र धारण में संयम नहीं है! वस्त्र धारण में सातवां गुणस्थान नहीं है। सातवें गुणस्थान के बिना उच्च आत्मानुभव नहीं और 'केवलज्ञान' नहीं व "केवलज्ञान' के अभाव से मोक्ष नहीं। ॐ सिद्धाय नमः। सम्यक्त्व और संयम धारण के बिना समाधि संभव नहीं
सविकल्प समाधि, निर्विकल्प समाधि ऐसे दो भेद हैं। सविकल्प समाधि वस्त्र से गृहस्थ को होती है। वस्त्र में निर्विकल्प समाधि नहीं है। निर्विकल्प समाधि के बिना सम्यक्त्व होता नहीं। भाइयो ! इसलिये डरना नहीं। मुनि पद धारण करो। निर्विकल्प समाधि होने के बाद वास्तविक सम्यक्त्व होता है। आत्मानुभव होने पर परमार्थ सम्यक्त्व होता है। व्यवहार सम्यक्त्व परमार्थ सम्यक्त्व नहीं है। यह साधन है। फल के लिये जैसे फूल होना आवश्यक है, वैसे ही व्यवहार सम्यक्त्व आवश्यक है, ऐसा कुन्दकुन्द स्वामी ने समयसार में बतलाया है। निर्विकल्प समाधि मुनि पद धारण करने के बाद ही होती है। सातवें गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान तक निर्विकल्प होती है। तेरहवें गुणस्थान में केवलज्ञान होता है। ऐसा नियम है, शास्त्र में लिखा है।
यह विचार कर डरो मत कि क्या करें ? संयम धारण करो, सम्यक्त्व धारण करो। पुद्गल और आत्मा भिन्न-भिन्न हैं, यह सर्व श्रुत है। सत्य को नहीं समझा। अगर सत्य समझते तो भाई, बन्धु, माता, पिता आदि को अपना नहीं समझते। यह सब पुद्गल से सम्बन्धित हैं। जीव का कोई भी साथी नहीं है। जीव अकेला है, बिल्कुल अकेला। उसका कोई नहीं, अकेला ही भव-भव में परिभ्रमण करता रहता है। मोक्ष की प्राप्ति भी अकेले को ही होती है।
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