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________________ प्राप्त हुई। इतना महत्वपूर्ण होने पर भी लोग जैन धर्म को स्वीकार नहीं करते। जैन होकर भी अपने धर्म पर विश्वास नहीं करते। 'जीव और पुद्गल पृथक-पृथक है' ___ अनादि काल से जीव और पुदगल दोनों ही भिन्न हैं। यह समस्त संसार जाता है. लेकिन विश्वास नहीं करता। पुद्गल को जीव और जीव को पुद्गल मानते हैं। दोनों के गुण धर्म भिन्न हैं। ये दोनों भिन्न-भिन्न हैं। क्या जीव पुद्गल है ? या पुद्गल जीव है ? पुद्गल तो जड़ है। स्पर्श, रस, वर्ण, गन्ध यह उसके गुण हैं। ज्ञान, दर्शन चेतना यह जीव का लक्षण है। हम तो जीव हैं। पुद्गल का पक्ष लिया तो जीव का अहित होता है। किन्तु मोक्ष को जाने वाला एक मात्र जीव है. पुदगल नहीं। जीव का कल्याण करना, अनर सुख को पहुंचाना जमा करीब्ध है, लेकिन मोहनीय कर्मों से विश्व भूला हुआ है। दर्शन मोहनीय कर्म सम्यक्त्व का नाश करता है। चारित्र मोहनीय कर्म चारित्र का नाश करता है। फिर हमें क्या करना चाहिए ? दर्शन मोहनीय कर्म को नष्ट करने के लिये सम्यक्त्व धारण करना चाहिये। चारित्र मोहनीय कर्म को नष्ट करने के लिए संयम धारण करना चाहिए। चारित्र मोहनीय कर्म को नष्ट करने के लिये संयम धारण कीजिये। यही हमारा आदेश है व उपदेश है। ' अनंत काल से जीव मिथ्यात्वकर्म से संसार में परिभ्रमण कर रहा है। तब मिथ्यात्व को नष्ट करना चाहिये और सम्यक्त्व को प्राप्त करना चाहिए। सम्यक्त्व क्या है ? इसका समग्र वर्णन कुन्दकुन्दाचार्य जी ने समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, अष्टपाहुड और गोम्मटसारादि ग्रन्थों में वर्णन किया है, लेकिन उस पर किसकी श्रद्धा है ? आत्म-कल्याण करने वाला ही श्रद्धा करता है। मिथ्यात्व को धारण मत करो, यह हमारा आदेश 4 उपदेश है। ॐ सिद्धाय नमः । कर्म की निर्जरा का साधन आत्म-चिन्तन ___ तुम्हें क्या करना चाहिए? दर्शन मोहनीय कर्म को नष्ट करना चाहिये। दर्शन मोहनीय कर्म आत्म चिंतन से नष्ट होता है। कर्म की 'निर्जरा' आत्म चिंतन से ही होती है। दान पूजा करने से पुण्य प्राप्त होता है। तीर्थ यात्रा करने से पुण्य प्राप्त होता है। हर एक धर्म का उद्देश्य पुण्य प्राप्त करना है किन्तु 'केवलज्ञान' होने के लिये, १.२०३
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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